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पिता (ग़ज़ल)
पिता (ग़ज़ल)

मापनी -- २२२२ २२२२ २२२२ २२२

माँ ममता की लोरी है, तो बच्चों के हैं प्यार पिता,
रिश्तों में अनमोल लगे, हैं माता का श्रृंगार पिता।

साथ रहे जीवन भर वो, पर ऐसा सबका भाग्य कहाँ,
निज बच्चों के खातिर जग में, होते हैं संसार पिता।

घर द्वार सभी अच्छे लगते, किलकारी हो घर में जब,
घर द्वार तभी सजते हैं जब, होते बंदनवार पिता।

सारे कमरे जगमग करते, परिवार लगे अपना सा,
शोभा उनकी बढ़ जाती, गर कमरे की दीवार पिता।

ये मेरा है ये तेरा है, कहते हैं इक दूजे से,
जिनसे सब कुछ पाया मगर, जताते ना अधिकार पिता।

सुबह सवेरे उठ जाते हैं, शाम ढले घर आते हैं,
ईश्वर बसते जिन चरणों में, ऐसे पालनहार पिता।

इच्छा सबकी पूरी होती, जिनके मन में जो भी हो,
निज बच्चों के जीवन का, करते सपने साकार पिता।

जब भी बोझ लगे जीवन तो, हाथ धरे हम बैठ गए,
पर जीवन से लड़ने को तब, रहते हैं तैयार पिता।

जब किलकारी गूंजी घर में, देखन को तब तरसे थे,
रोक सके ना आंसू को, जब देखा पहली बार पिता।

शर्म हया सब त्याग दिए थे, बनते थे नादान सभी,
बेशर्मों को देख मरे थे, जाने कितनी बार पिता।

देश विदेश सभी घूम रहे, मधुकर करते फिक्र नहीं,
छोड़ दिए तन्हा जिनको, ऐसे होते लाचार पिता।

© 🙏🌹 मधुकर 🌹🙏