...

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मेरे गांव की माटी
सालों बाद मेरे तन ने छुई
मेरे गांव की पावन माटी

निश्छल उन्मुक्त खेलता बचपन
अल्हड़ कैशोर की चहक से गूँजता आँगन
प्रेमायुक्त बूढ़ी आँखें, गर्वित मुस्कातीं
क्षीण दृष्टि से पीढ़ियां दर्शातीं

सालों बाद मेरे तन ने छुई
मेरे गांव की पावन माटी

अमृत घोलता मंदिर की घण्टियों का स्वर
चहचहाते पंछी, ताल सरोवर पोखर
सांझ ढले चौपालों पर
अविरत किस्सों की पोटली खुल जाती

सालों बाद मेरे तन ने छुई
मेरे गांव की पावन माटी

सांसों में घुलती मिट्टी की सौंधी सी महक
कहीं दूर कूकती कोयल, मन शांत कर जाती
मॉं अन्नपूर्णा का वात्सल्य, मेरी माटी की देन
जन जन को भाती, चोखा-बाटी

सालों बाद मेरे तन ने छुई
मेरे गांव की पावन माटी।


© IdioticRhymer