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कहकहों में भी आँसुओं के अंश होते हैं
तारीफ़ ना करना, तारीफ़ों में भी दंश होते हैं,
सूरत ना देख, मासुमियत में भी भ्रंश होते हैं।
ग़म को छुपाने में, कहकहों का सहारा ना ले,
इन कहकहों में भी, आँसुओं के अंश होते हैं।

कोई बयां करता, हम दर्द सीने में छुपाते हैं,
खुशियां ज़ाहिर कर, आँसुओं में दिखाते हैं।
ग़म की क्या मज़ाल, मिज़ाज गमगीन करे,
ग़मों के दौर में भी हम, सदैव मुस्कुराते हैं।

ग़म और ख़ुशी का साथ, ज़िन्दगी का दौर है,
ना किसी का ठिकाना, ना किसी का ठौर है।
ज़िन्दगी तो केवल, ज़िन्दा दिल्ली का नाम है,
ग़म में जीने का 'मधुकर', मज़ा कुछ और है।

© 🙏🌹 मधुकर 🌹🙏