...

3 views

कब तक रहोगे मौन?
"विवश हूं देख कर
इस असहनीय
खामोशी को।
यह खामोशी
जो करती है
मेरे अंतर्मन में
अनगिनत घाव,
और मैं तुम्हारी
इस घोर उपेक्षा को
सहन करते हुए
लगभग असहाय हो
जानना चाहता हूं
कुछ तुमसे,
पर तुम्हारे सीप सदृश
नेत्रों की विवशता देख
स्वयं भी हो जाता हूं
विवश, असहाय।
जानता हूं,
तुम्हें पता है,
यह खामोशी ही
मेरी विवशता है।
फिर भी करुणा से भरकर
व्यग्र मन से पूछना चाहता हूं
कुछ तुमसे।
मानता हूं,
अभी भी वहीं हो,
प्रेम की अकल्पनीय
साकार प्रतिमा।
मेरा तुम्हारा,
अनंत अलौकिक प्रेम
आज भी वहीं है,
पर ना जाने क्यों?
कभी-कभी होता है एहसास,
अब तुम 'वह'नहीं हो,
समय के साथ-साथ
बदल गया है तुम्हारा
मेल मिलाप और
व्यवहार का ढंग।
बदल गया है,
देखने, समझने का
अपना नजरिया।
होते जा रहे हो
अपने कर्तव्य के प्रति
निरंतर उदासीन।
जानना चाहता हूं,
मेरे प्रति तुम्हारी
उदासीनता का कारण।
तुम्हारी खामोशी
समस्त दिशाओं को
चिंतित एवं व्यग्र कर रही है।
समझता हूं,
जानने का यत्न
व्यर्थ ही है।
नहीं तोड़ोगे अपना मौन व्रत,
पर कब तक?
क्या तब भी
ऐसे ही रहोगे मौन,
जब "मैं"
हो जाऊंगा विभक्त
कई खंडों में।
क्या तब भी
रहेगी यह खामोशी?
जब मेरा अस्तित्व
बिखर जाएगा
अलग-अलग खेमों में।"


© देवेन्द्र कुमार सिंह