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आज सुबह मैं निकला घर से।
आज सुबह मैं निकला घर से।

जो न करना समझाया सबको,
कुछ वैसा ही खुद कर जाने को,
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
दुःख तकलीफ से भरे इस जीवन से,
क्षण भर में मुक्त हो जाने को,
लड़ना सीखा जिन मुश्किलों से,
एक बार उन्हें पीठ दिखाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
मोह माया के जंजाल से पल में,
सदा के लिए निकल जाने को,
अपने पराए सब को एक कर,
दुनिया से विदा हो जाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
अपना सुख दुःख और खोया पाया,
सब को आज एक कर जाने को,
सारे कस्मे वादों से एक पल में,
आज सीधा मुकर जाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
जीवन के इस काल चक्र से,
सीधा विलुप्त हो जाने को,
मर मर कर तो बहुत जीया,
आज सचमुच में मर जाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
दोस्त यार, भाई बंधु,
सभी अपनों को रोता छोड़ जाने को,
जो जिम्मेदारियां उठाई थी उनसे,
सीधा मुँह फेर जाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
क्या होगा उस बेवा का जो,
सिंदूर में मुझे सजाती है,
क्या कोई और आएगा मेरी लाडो को,
रात में लोरी सुनाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
क्या होगा उस माँ का जिसकी,
मेरी एक चोट से आँखें भर जाती हैं,
क्या उठ पायेगा वो पिता,
मेरी अर्थी को काँधा दे पाने को।
आज सुबह मैं निकला घर से,
सब खत्म कर मर जाने को।
फिर सोचा कितना कमजोर हूँ मैं,
दुःखी हूँ एक जीवन चलाने को,
क्या काबिल भी हूँ मर कर मैं,
इतनी आत्माओं का दुःख उठाने को।
बदला इरादा, घर को आया,
बेटी को यूं मुस्कुराता पाया,
शून्य सा भाव देख बीवी झल्लाई,
बोला था न सब्जी लेकर आने को।
बरबस हंसी छूट गयी खुद पर जो,
सुबह निकला था ये सब गंवाने को,
माता पिता संग बैठा हूँ खुशी खुशी,
बीवी के हाथ का आलू पराठा खाने को।
आज सुबह मैं निकला था घर से,
एक जिंदगी पूरी जी जाने को।

लव यू जिंदगी।💓
✍️© शैल