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शहर की रंगीनियां
#शहरीदृश्यकाव्य
गाँव से दूर,
शहरी आबो हवा में हुजूर।
चल बितायें,
शहर की "रंगीनियों" में खो जायें।
है शोरगुल,
लगे वीराने का मिटा कुल।
रहे दौड़ता,
सुबहो शाम"बेकारी"को भगाता।
देख बस्तियां,
मिटाये गरीबी जहाँ हस्तियां।
नदारद शोर,
थी नगर की व्यस्तता से भरी भोर।
कहीं तन्हाई,
हसीन महफ़िलों में गहरी खाई।
शानो शौकत,
"गिल"फ़िर भी रिहायश "सशक्त"।
© Navneet Gill
गाँव से दूर,
शहरी आबो हवा में हुजूर।
चल बितायें,
शहर की "रंगीनियों" में खो जायें।
है शोरगुल,
लगे वीराने का मिटा कुल।
रहे दौड़ता,
सुबहो शाम"बेकारी"को भगाता।
देख बस्तियां,
मिटाये गरीबी जहाँ हस्तियां।
नदारद शोर,
थी नगर की व्यस्तता से भरी भोर।
कहीं तन्हाई,
हसीन महफ़िलों में गहरी खाई।
शानो शौकत,
"गिल"फ़िर भी रिहायश "सशक्त"।
© Navneet Gill
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