...

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मेरी आँखों का सच तो पढ़

चाहत है मुझे बस तेरी,
फिर से तेरा तलबगार हूँ,
कह दे दिल से आज फिर,
कि मैं आज भी तेरा प्यार हूँ।
भ्रम है ये तेरा कोई और मेरा है,
इस दिल में बस तेरा बसेरा है,
दूर हो जाती है तू पल भर में लेकिन,
मैं कहाँ जाऊं, यही तो मेरा डेरा है।
जिंदगी के इस मोड़ पर अब मैं,
क्या किसी गैर को चाहूँगा,
शिकवा सारे तेरे जायज़ हैं,
पर तेरे बिना तो मर ही जाऊँगा।
माना मुश्किल है यकीन दोबारा,
कर पाना मुझ पर तेरा यूँ,
पर शायद इल्म नहीं तुझे,
इस बार गलत मैं नहीं हूं।
जिंदगी में तो यूँ आयी बहुतेरी,
मोहब्बत पर बस एक तुझसे हुई,
पहली भी तू और आखिरी भी तू,
हुस्न की परियां तो आयीं और गईं।
नहीं आज कोई हक पर इल्तेजा है मेरी,
प्यार न सही नफरत तो कर,
चुप सी बैठी यूँ उदास है क्यों,
एक बार मेरी आँखों का सच तो पढ़।

© ✍️शैल