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दहलीज
हर उम्र के पराव के दहलीज पर खड़े
कई क़दम आगे हुए, देखते पीछे
एक नज़र हालात पर ,कई दफा जज़्बात पर
जो बिछड़ गया,उसको देखते
आज भी खड़े, दहलीज पर
हर छूवन हवाओं का, धूप का छांव का
शोर से परे, हां वहीं खड़े,दहलीज पर
चौक चौराहों से,विदाई देते
दोस्तों की शरारतें, खनकती हंसी
यादों में बसी, मां की मीठी रोटी
हां वहीं खड़े दहलीज पर
मुस्कुराहटों की ताना बानी से
धूल में सनी, पानी से
पगडंडियों से लगे खेत पर
हां वहीं खड़े दहलीज पर ।
© Gitanjali Kumari
कई क़दम आगे हुए, देखते पीछे
एक नज़र हालात पर ,कई दफा जज़्बात पर
जो बिछड़ गया,उसको देखते
आज भी खड़े, दहलीज पर
हर छूवन हवाओं का, धूप का छांव का
शोर से परे, हां वहीं खड़े,दहलीज पर
चौक चौराहों से,विदाई देते
दोस्तों की शरारतें, खनकती हंसी
यादों में बसी, मां की मीठी रोटी
हां वहीं खड़े दहलीज पर
मुस्कुराहटों की ताना बानी से
धूल में सनी, पानी से
पगडंडियों से लगे खेत पर
हां वहीं खड़े दहलीज पर ।
© Gitanjali Kumari
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