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भिक्षु
बाहर के धूर्त से
तन रूग्ण क्या हुआ ?
भीतर के द्वंद्व से
मन उद्विग्न क्या हुआ ?
संसार के आडंबर से
तंग क्या हुआ ?
रिश्तों के स्वार्थ से
दंग क्या हुआ ?
शब्दों के भाव से
छल क्या हुआ ?
द्वेष के राग से
ज्वलित क्या हुआ ?
तृष्णा के वास से
अशक्त क्या हुआ ?
धृणा के रंग से
दूषित क्या हुआ ?
क्रूरता के रक्त से
व्यथित क्या हुआ ?
असत्य के कथन से
भ्रमित क्या हुआ ?
तब यथार्थ चल पड़ा
भिक्षु बनकर ,
मुनि बुद्ध के मार्ग पर
शांति के तलाश में ।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि- १८/२/२०२२, मार्च
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