...

3 views

चार दिनों की चाँदनी
क्षणभंगुर होती है ज़िन्दगी, क्षणभर की है बात,
चार दिनों की ये ज़िन्दगी, चार क़दम का साथ।
चाहे कोई जतन तू कर ले, जो होना है वो होगा,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।

पहला कदम बाल्यावस्था, माता-पिता से आस,
चलना गिरना गिरकर उठना, था सुखद एहसास।
हर पल अपने सिर पे होता, उनका ही बस हाथ,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।

दूसरा कदम यौवन अवस्था, छाई रंगीन जवानी,
चाहे तो लिख दें जीवन की, फ़िर से नई कहानी।
ख्वाब पूरा करने को, जीवन की है शुरूआत,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।

तीसरा कदम ऐसे बीता, जैसे दहके कोई पावक,
ना जानें कब बना दिया, मुझको भी अभिभावक।
सोचने को समय ना मिले, सब कुछ हुआ हठात,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।

चौथा कदम दिखलाया, चौथेपन का आघात,
सत्य यही जीवन का, बाकी मोह माया की बात।
क्षणभंगुर होती है ज़िन्दगी, क्षणभर की है बात,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।
© 🙏🌹 मधुकर 🌹🙏