" आजमा रहे हैं "
" आजमा रहे हैं "
क्या बात है..?
इस संसार में हर कोई 'आजमाने' के वास्ते ही पैदा हुए लगता है..!
यह कैसा सितम ढाए हो..?
जो देखो वो किसी न किसी रूप में एक दूजे को क्यूँ आजमा रहे हैं..?
जैसे कि सभी किसी न किसी मक़सद से जुड़े हों..!
कोई भी तो यहाँ पर खाली पीली आए तो नहीं है..!
सभी के फ़ितूर दिमाग में कुछ न कुछ कांड का उद्गम लिए एक दूसरे से मिल रहा है..!
क्या, क्यूँ, कब, कहाँ, कैसे की राह पर चल पड़ा है हर कोई..!
कुछ न कुछ हर किसी को किसी से चाहिए..!
बेगाने हों चाहे सगे संबंधी सब के मुंह से स्वार्थ का लार टपकता है..!
अभिलाषाओं की फ़ेहरिस्त लिए ऐसे भाग रहा है हर कोई कि जैसे इसके अलावा संसार में कोई जरूरी काम नहीं रह गया है..!
जहाँ देखो वहाँ लम्बी चौड़ी लगी कतारें है..!
ऐसे जैसे किसी माॅल में वस्तुओं की खरीद फ़रोक्त के लिए कोई खडा हो..!
यह कैसा सितम ढाए हो..?
जो देखो वो किसी न किसी रूप में एक दूजे को क्यूँ आजमा रहे हैं..?
ऐसा कौन सा हिसाब किताब लेकर आए हो दूसरे संसार से..?
जो एक दूजे को यहाँ कच्चा चबाए जा रहे हो..!
आगे बढ़ने की होड़ में हर किसी को मौका मिलते ही क्यूँ नीचा दिखा रहे हो..?
क्यूँ भूल जाते हो..?
जैसे आए थे वैसे ही लौट जाना है..!
मिट्टी से बने पुतले की भांति वापस उसी में ही मिल जाना हैं..!
जो भी लिया इस संसार से वह सब कुछ एक दिन यहीं छूट जाना हैं..!
किस गुमान में जी रहे हो प्यारे..?
रात दिन जिस धन दौलत के पीछे दौड़ रहे हो..
वह एक दिन बंद मुट्ठी में रेत की तरह फ़िसल जाना हैं..!
नहीं इख़्तियार तेरा अपनी स्वांसों पर और नहीं तेरी हाय-हाय कमाई हुई दौलत संपत्तियों पर, एक दिन भरभराकर तुझे और तेरी बसाई हस्तियों को अस्थियों में तब्दील हो जाना है..!
क्या बात है..?
इस संसार में हर कोई 'आजमाने' के वास्ते ही पैदा हुए लगता है..!
यहाँ हर कोई एक दूजे को आजमा रहे हैं..!
🥀 teres@lways 🥀
क्या बात है..?
इस संसार में हर कोई 'आजमाने' के वास्ते ही पैदा हुए लगता है..!
यह कैसा सितम ढाए हो..?
जो देखो वो किसी न किसी रूप में एक दूजे को क्यूँ आजमा रहे हैं..?
जैसे कि सभी किसी न किसी मक़सद से जुड़े हों..!
कोई भी तो यहाँ पर खाली पीली आए तो नहीं है..!
सभी के फ़ितूर दिमाग में कुछ न कुछ कांड का उद्गम लिए एक दूसरे से मिल रहा है..!
क्या, क्यूँ, कब, कहाँ, कैसे की राह पर चल पड़ा है हर कोई..!
कुछ न कुछ हर किसी को किसी से चाहिए..!
बेगाने हों चाहे सगे संबंधी सब के मुंह से स्वार्थ का लार टपकता है..!
अभिलाषाओं की फ़ेहरिस्त लिए ऐसे भाग रहा है हर कोई कि जैसे इसके अलावा संसार में कोई जरूरी काम नहीं रह गया है..!
जहाँ देखो वहाँ लम्बी चौड़ी लगी कतारें है..!
ऐसे जैसे किसी माॅल में वस्तुओं की खरीद फ़रोक्त के लिए कोई खडा हो..!
यह कैसा सितम ढाए हो..?
जो देखो वो किसी न किसी रूप में एक दूजे को क्यूँ आजमा रहे हैं..?
ऐसा कौन सा हिसाब किताब लेकर आए हो दूसरे संसार से..?
जो एक दूजे को यहाँ कच्चा चबाए जा रहे हो..!
आगे बढ़ने की होड़ में हर किसी को मौका मिलते ही क्यूँ नीचा दिखा रहे हो..?
क्यूँ भूल जाते हो..?
जैसे आए थे वैसे ही लौट जाना है..!
मिट्टी से बने पुतले की भांति वापस उसी में ही मिल जाना हैं..!
जो भी लिया इस संसार से वह सब कुछ एक दिन यहीं छूट जाना हैं..!
किस गुमान में जी रहे हो प्यारे..?
रात दिन जिस धन दौलत के पीछे दौड़ रहे हो..
वह एक दिन बंद मुट्ठी में रेत की तरह फ़िसल जाना हैं..!
नहीं इख़्तियार तेरा अपनी स्वांसों पर और नहीं तेरी हाय-हाय कमाई हुई दौलत संपत्तियों पर, एक दिन भरभराकर तुझे और तेरी बसाई हस्तियों को अस्थियों में तब्दील हो जाना है..!
क्या बात है..?
इस संसार में हर कोई 'आजमाने' के वास्ते ही पैदा हुए लगता है..!
यहाँ हर कोई एक दूजे को आजमा रहे हैं..!
🥀 teres@lways 🥀
Related Stories