...

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पता न चले
बचा कर रख लूँ, छुपा कर रख लूँ
कहीं किसी को पता न चले
नज़ुक दौर है, इश्क़ की लौ जला कर रख लूँ
दुआ है मेरी, ख़ुदा कुछ रोज़ हवा न चले

हकीक़त बने न बने, मैं ख्वाब बना कर रख लूँ
लब सिल जाएं, जहां में कहीं ये फसाना न चले
ख़ुदग़र्ज़ सी ख्वाहिश को, ख़ुद में दबा कर रख लूँ
नाअहली में इज़हार न हो, रुसवाई हो नाइल्मी का बहाना न चले

नज़र झुका कर चलूँ, उससे नज़र चुरा कर चलूँ
कुछ रोज़ और, उसे हकीक़त पता न चले
डर है न टूट जाए दिल, जज़्बात छुपा कर रख लूँ
कहता है ज़माना, इस दर्द में कोई दवा न चले।


© IdioticRhymer