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शिव का स्वरूप
है मेरा प्रणाम शिव को जो हैं
ब्रह्म एवं विष्णु के स्वामी, निर्गुण एवं सगुण धारी
ब्रह्माजी कहते हैं,
पर है शिव तथा अपरब्रह्म है शिव
और है जटाजूट धारी।
दक्ष जी कहते हैं,
सर्वंरूप है शिव तथा वरस्वरूप है शिव
और है सम्पूर्ण विश्व के स्वामी।
राहू जी कहते हैं,
दिव्य है शिव तथा जगतपति है शिव
और है महादेव लिंगरूप धारी।
पुराणगत कहते हैं,
व्यालप्रिय है शिव तथा व्योमरूप है शिव
और है शिव श्मशानवासी।
देवगण कहते हैं,
जगत्स्वरूप है शिव तथा जगतपिता है शिव
और है महादेव त्रिनेत्र धारी।
शिव आत्मस्वरूप को कहते हैं,
हूं मैं परे से भी अत्यंत परे तथा हूं मैं खुद में स्थित कहीं
और सब कहते हैं मुझे निर्विकारी।
© Shreya tiwari
ब्रह्म एवं विष्णु के स्वामी, निर्गुण एवं सगुण धारी
ब्रह्माजी कहते हैं,
पर है शिव तथा अपरब्रह्म है शिव
और है जटाजूट धारी।
दक्ष जी कहते हैं,
सर्वंरूप है शिव तथा वरस्वरूप है शिव
और है सम्पूर्ण विश्व के स्वामी।
राहू जी कहते हैं,
दिव्य है शिव तथा जगतपति है शिव
और है महादेव लिंगरूप धारी।
पुराणगत कहते हैं,
व्यालप्रिय है शिव तथा व्योमरूप है शिव
और है शिव श्मशानवासी।
देवगण कहते हैं,
जगत्स्वरूप है शिव तथा जगतपिता है शिव
और है महादेव त्रिनेत्र धारी।
शिव आत्मस्वरूप को कहते हैं,
हूं मैं परे से भी अत्यंत परे तथा हूं मैं खुद में स्थित कहीं
और सब कहते हैं मुझे निर्विकारी।
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