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सम्पन्न - विपन्न
// #सम्पन्नता_और_विपन्नता //
जिस जीवन में नहीं स्नेह - प्रेम की सम्पन्नता,
ह्रदय- मरुस्थल जग ना सुख जीवन विपन्नता;
धन से मात्र मनुष्य - धनवान कहला सकता,
धन से जुटे सुविधा पर जीवन सुख नहीं पाता।
दृष्टि उठा देख जग चरु दिशा सुख- सम्पन्नता,
प्रकृति तरुवर - छाया प्राप्ति सुख - निश्चलता;
हर - हर नदी सागर धरा तन बहे प्रेम निर्मलता,
प्रकृति आंचल हर रंग सुंदर सुगंध पुष्प सजता।
पल- पल तरु तृण फूट रहे तरुण अंकुर अनंत,
अभिनंदन को आतुर ग्रीष्म शरद सावन बसंत;
तू करुण - ह्रदय से आलिंगन कर प्रकृति तृण,
जीवन पाएगा प्रेम - स्नेह सुख अविरल अनंत।
ह्रदय अतल झांक प्रेम सागर कल कल बहता,
पूंछ स्वयं अंतर्मन सृष्टि किस कण मन रमता;
रोम- रोम तेरा स्नेह करुणा दया प्रेम रंग रंगता,
तू पंख फैला नील गगन में फिर स्वछंद उड़ता।
ज्ञान ध्यान योग बिन जीवन न सुख सम्पन्नता,
स्नेह प्रेम करुणा संवेदना से चितवन प्रसन्नता;
पवन मृदुल स्पर्श- स्पंदन प्रणय प्रेम पावनता,
तू स्वयं गुण संपन्न रचनात्मक सृष्टि की रचेता।
© Nik 🍁
जिस जीवन में नहीं स्नेह - प्रेम की सम्पन्नता,
ह्रदय- मरुस्थल जग ना सुख जीवन विपन्नता;
धन से मात्र मनुष्य - धनवान कहला सकता,
धन से जुटे सुविधा पर जीवन सुख नहीं पाता।
दृष्टि उठा देख जग चरु दिशा सुख- सम्पन्नता,
प्रकृति तरुवर - छाया प्राप्ति सुख - निश्चलता;
हर - हर नदी सागर धरा तन बहे प्रेम निर्मलता,
प्रकृति आंचल हर रंग सुंदर सुगंध पुष्प सजता।
पल- पल तरु तृण फूट रहे तरुण अंकुर अनंत,
अभिनंदन को आतुर ग्रीष्म शरद सावन बसंत;
तू करुण - ह्रदय से आलिंगन कर प्रकृति तृण,
जीवन पाएगा प्रेम - स्नेह सुख अविरल अनंत।
ह्रदय अतल झांक प्रेम सागर कल कल बहता,
पूंछ स्वयं अंतर्मन सृष्टि किस कण मन रमता;
रोम- रोम तेरा स्नेह करुणा दया प्रेम रंग रंगता,
तू पंख फैला नील गगन में फिर स्वछंद उड़ता।
ज्ञान ध्यान योग बिन जीवन न सुख सम्पन्नता,
स्नेह प्रेम करुणा संवेदना से चितवन प्रसन्नता;
पवन मृदुल स्पर्श- स्पंदन प्रणय प्रेम पावनता,
तू स्वयं गुण संपन्न रचनात्मक सृष्टि की रचेता।
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