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ज़िन्दगी
दिन निकलते ही डगर में खो गई है ज़िन्दगी
शाम ढलते ही अधर में सो गयी है ज़िन्दगी
रात दिन संघर्ष कर बन्द करावास में
हाय रोटी की फ़िक्र में रो गई है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी सड़कों पर अरे नीलाम होने लगी
एक कश्ती में, एक भंवर में खो गई है ज़िन्दगी
जी सकेंगे ज़िन्दगी कैसे बताओ आज हम
मौत से बोझिल सफ़र में हो गई है ज़िन्दगी
शाम ढलते ही अधर में सो गयी है ज़िन्दगी
रात दिन संघर्ष कर बन्द करावास में
हाय रोटी की फ़िक्र में रो गई है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी सड़कों पर अरे नीलाम होने लगी
एक कश्ती में, एक भंवर में खो गई है ज़िन्दगी
जी सकेंगे ज़िन्दगी कैसे बताओ आज हम
मौत से बोझिल सफ़र में हो गई है ज़िन्दगी
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