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शीर्षक - नश्ल
शीर्षक - नश्ल

ईंटो के मकाँ के शौक़ीन,
पत्थर का दिल बना बैठे हैं।
दौलत के नशेबाज़ नश्ल,
ख़ुदको धुएं में उड़ा बैठे हैं।

शैतानों जैसी हरक़तें,
ये भुला मीठी ज़ुबाँ बैठे हैं।
चेहरे पर चेहरा लेकर,
झूठ का पर्दा लगा बैठे हैं।

भटकती हुई फ़िर रही रूह,
इंसानियत को कर दफ़ा बैठे हैं।
फ़र्ज़ी किताबों की कहानियों में,
ये कर ख़ुदको तवाह बैठे हैं।

क़िस्मत की लकीरों से,
वास्ता कबका छुड़ा बैठे हैं।
ये ख़ुदकी क़िस्मत को,
ख़ुदके हाथों जला बैठे हैं।

माँ-बाप की नहीं सुनते,
माँ-बाप वृद्धाश्रम भिजवा बैठे हैं।
रिश्तों की कोई क़द्र नहीं,
रिश्तों में कबका आग लगा बैठे हैं।

आँखों में न शर्म न हया,
ये सबको बेचकर खा बैठे हैं।
ज़रा बचकर रहना इनसे,
ये नश्ल हर जगह आ बैठे हैं।

©Musickingrk