...

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उल्लास का पर्व
करे उत्साहित रग रग,
"दीपकिरण" जब हो जगमग।
देखो रंगोली पग पग,
बावरा मन करता फिर डगमग।

हर्षो उल्लास का पर्व,
समूची "क़ायनात" को है गर्व।
निखरी"धरा"उड़ी गर्द,
बिखरे रंग लगे गुलिस्तान जर्द।

चकाचौंध से सरोबार,
रौनकों से रखा बस सरोकार।
अनूठेपन का कारोबार,
प्रकाश पुंज का लाये त्यौहार।

रिश्तेदार न अब क़ोई,
मायूसियां "चादर"तान सोईं।
अठखेलियों में खोई,
"गिल"दीवाली की रात है आई।

© Navneet Gill