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मैं तृष्णा वो तृप्ति है....
मैं तृष्णा वो तृप्ति है,जीवन की मेरे वो ही तो संतृप्ति है,
धारा है अविरल जलधार की जो अमृत बन बरसती है।

जीवन यात्रा की वो राह,बुझे नयनों की वो ज्योति है,
जीवन के अंधेरों को जगमगाता कर दे वो प्रदिप्ती है।

प्रेम से परिपूर्ण किया जिसने,अनवरत प्रेम की पूर्ति है,
जीवन को मधुमास है बनाया,साक्षात् वो जैसे रति है।

अकल्पनीय है जीवन उसके बिना उसी से ही प्रीति है,
एकाकार हो जाए समर्पण में,मधुर मिलन की ये रीति है।

© "मनु"