...

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न जाने क्यों,मुझे अच्छा लगता है।
तुम्हारा यूं मुस्कराना,
न जाने क्यों ,
मुझे अच्छा लगता है।
देखकर कनखियों से,
फ़िर तुम्हारा छुप जाना,
न जाने क्यों,
मुझे अच्छा लगता है।
धीरे धीरे खिड़की के पट खोल,
तुम्हारा यूं झांकना,
और फिर छुप जाना,
न जाने क्यों,
मुझे अच्छा लगता है।
याद है मुझे वो दिन,
मिले थे तुम ,
राह में एक दिन,
अब मिलो,तुम रोज रोज,
मन में यह अहसास,
न जाने क्यों ,
मुझे अच्छा लगता है।
याद है मुझे,
हमारी पहली मुलाकात,
उलझा था मैं,
इक उलझन में,
आकर तुमने मार्ग दिखाया था,
संकोच में ग्रस्त,
लज्जा के आवरण से पस्त,
क्या है तुम्हारा नाम,
और कहां पाया है मुकाम,
कुछ भी न पूछ पाया था।
सपनों में रहती हो तुम,
बन जाओ,अब हकीकत मेरी,
करेंगे फिर मन की बातें हम,
कुछ तुम मन की कहना,
कुछ मन की कहेंगे हम,
दिल में यह अहसास,
न जाने क्यों ,
मुझे अच्छा लगता है।

© mere alfaaz