...

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खोखले आडम्बर
भले ख़ूबसूरत था समां,
पर,करें थीं फ़िज़ाएं कुछ अलग बयां।
थे,मायूसियों के बादल,
भिगोये नयन लगा, अनूठा "काजल"।

मदमस्त थीं खूब बहारें,
मगर चिराग़े-मुर्दः की मिलीं "कतारें"।
था,नभ का हसीं आंचल,
लेकिन पलकों ने ही गिरा ली साँकल।

मसरूफियत का चोला,
पहन मिले जहान था नितांत अकेला।
"रंगीनियों"से थीं भरपूर,
करें "मन मंदिर" को देखो चकनाचूर।

सब लगती कभी बेमानी,
आई,समझ जब भी जीवन "कहानी"।
है फ़ानी यह "झूठे मेले",
"गिल"आडम्बरों में उलझे हुए खोखले।

© Navneet Gill