...

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द्रौपदी पुकार
निर्बल हो गई सबल द्रौपदी ।
चिंतित होकर मौन खडी।
कर थोड़ा सा ख्याल मन में ।
करुण स्वरों में बोल पड़ी।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे ।
अब तुम चक्र उठा लेना ।
बनकर मेरे वीर कृष्ण तुम ।
मेरा चीर बचा लेना ।
मधुर बांसुरी धर अधरो पे ।
माधव ध्यान मगन बैठे ।
सुन द्रौपदी की करुण ध्वनि ।
उनका सिंहासन ढोल पडा।
भौचक्के हो कृष्ण कन्हैया
फिर अकुलाइ खड़े हुए ।
है दुविधा मै मेरी बहना ।
कुछ तो संकट भारी है ।
इतना कह फिर मोहन स्तब्ध हुए ।
फिर दहला कर बोली रुक्मणि ।
है केशव जाओ जाओ ।
जाकर पाप क्षीण करना ।
बनकर उसके वीर आज तुम ।
उसका चीर बचा लेना ।
होते देख धर्म की हानि ।
कृष्ण सभा में पहुंच गए ।
ये कैसा दरबार लगा है।
जाकर माधव बोल गए ।
है ज्येष्ठ पिता और पितामह।
और गुरु द्रोण से ज्ञानी यन्हा।
सारी हस्तिनापुर और महाशक्तिया सारी यहां ।
किंतु क्या सबके नेत्र , अनेत्र हुए।
या ज्ञान सभी का क्षीण हुआ ।
इस क्रूर द्र्योधन के आगे क्यों सारा दरबार मौन हुआ ।
तुम चुप्पी साधे बैठे रहो।
मै ये दुष्कर्म नही होने दूंगा ।
बनकर तेरा वीर आज मैं तेरा चीर बचाऊंगा
है माधव ,है वासुदेव ,है देवकीनंदन ।
बहरों महासभा में क्यू तुम ढोल बजाते हो।।

बैठे अंधों के आगे तुम ।
क्यू ज्ञान सुमन बरसाते हो ।
समय हुआ अब बहुत कृष्ण तुम इस क्रीड़ा को बंध करो।
बनकर मेरे वीर कृष्ण तुम दुशासन पर वार करो ।।



© Sarthak writings