...

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गांव 🌳🌳
Those days are gone when poor people got as much love as the rich in the village.😓😓

बैठा था मैं एक दिन पेड़ की छांह में,
लगा बैठा हूं धरती मां की बांह में,
बैठे बैठे भरी एक सांस और सोचता हूं,
याद आता है वो बचपन गांव में,
जब खेलते थे दिन दोपहर की छांव में,
न आती कोई बीमारी थी उस समय के खेल से,
बैठे हो पेड़ की डाल में प्रतीत होता बैठे हैं रेल में,
वो भी क्या दिन थे जब खेलते थे दिन भर,
कोई फिक्र न थी क्या हो रहा है घर पर,
जब आते थे घर दिन भर थक कर,
बिना खाए सो जाते थे इधर उधर,
वो भी क्या दुआर था,
बच्चे आते थे उस मैदान में खेलने,
वो भी क्या चौपाल थी,
बच्चे आते थे ढोल की धुन पर नाचने,
दिन भर मैदान में खेल के,
खाना खाते थे ठेल के,
नही दिखता ये दृश्य बिना आपसी मेल के,
अब नही आएंगे वो दिन इस देश में,
कोई है घर में तो कोई परदेश में।

वर्तमान स्थिति🙏😔😔

अब सभी दोस्त बोलें पैसों के आवेश में,
अब सभी दोस्त पूंछे कितना पैसा है तेरे जेब में
बोला मै उतने ही पैसे हैं मेरे जेब में,
जितने में जा सके खाना इस भूखे पेट में,
अब सभी दोस्तों में एक रुआब है,
कहीं जुआं तो कहीं शराब है
वो गांव अब आता नही मुझको रास है,
यहां रहना अब बहुत खराब है।


© Mayank Rav