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आँखों के समंदर मे उतर जाने दे
अपनी आँखों के समंदर मे उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ, मुझे डूब के मर जाने दे ।
ए नये दोस्त मे समझूंगा तुझे भी अपना
पहले माजी का कोई जख्म तो भर जाने दे ।
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जायेगी
कोई आँसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे ।
जख्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ के कहूँ तुझसे , मगर जाने दे ।।
__________________
© SYED KHALID QAIS
तेरा मुजरिम हूँ, मुझे डूब के मर जाने दे ।
ए नये दोस्त मे समझूंगा तुझे भी अपना
पहले माजी का कोई जख्म तो भर जाने दे ।
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जायेगी
कोई आँसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे ।
जख्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ के कहूँ तुझसे , मगर जाने दे ।।
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