...

8 views

न जाने क्यूं
उम्मीद थी जिनसे,
न जाने क्यूं,
उम्मीदों पर हमारी ,वो पानी फ़ेर गए।
भरोसा था जिन पर,
न जाने क्यूं,
वो भरोेसा हमारा तोड़ गए।

बात जो करनी चाही उनसे,
न जाने क्यूं,
खफ़ा होकर,
वो मौन हो गए।

बढ़ा जब मित्रता का हाथ,
दोस्ती के उस पावन धागे को,
न जाने क्यूं,
एक झटके में,
तोड़ कर, वो चले गए।

उसकी वो अदा
जिस पर हम थे फिदा,
पाक साफ था प्यार हमारा,
जानते थे वो,
नाज़ुक था,हृदय हमारा,
फिर,
न जाने क्यूं,
वो बेदर्द बन,
हमें यूं,
रूसबा कर, चले गए।

झेल सकते थे हम,
उनके सब सितम,
मान कर इसे,
अपना नसीबो- करम,
जानकर भी यह सब,
न जाने क्यूं,
हमें सरेराह छोड़कर,
वो यूं चले गए।

#टूटा ह्रदय


© mere alfaaz