...

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एक कतरा मोहब्बत
वक़्त का सितम और यह पेट की जलती आग 🔥 क्या कहूँ
बेबस हूँ, अपनों ने ही किया छल, अब किसी से मैं क्या कहूँ

अनजानी राहों में किसी ने दुत्कारा, किसी ने मारा क्या कहूँ
इंसानियत हो कर शर्मशार, करती सफ़र ज़िंदगी में क्या कहूँ

कुछ दूर और चला मुसाफ़िर, भटकता भूखा-प्यासा क्या कहूँ
देखी एक बुढ़ी माँ, फटे हाल, भूख से थी वो बेहाल क्या कहूँ

इंसानियत की दुहाई दे कर माँगती भीख दर-ब-दर क्या कहूँ
बैठ गया मैं भी उसके पास, ख़ामोश सी यह जुबान क्या कहूँ

लौटते देखे कुछ नौनिहाल, 'प्रेम' से मुस्कराते चेहरे क्या कहूँ
दूर रुक कर देखा, आकर प्रेम से पूछा क्या हुआ? क्या कहूँ

समझते देर ना लगी, रूप थे ईश्वर का,भूखे है दोनों क्या कहूँ
टटोली पोटली और रख दिए पकवान, इस प्रेम का मैं क्या कहूँ

तुतलाती हुई ज़बान से हम रोज 😊 लाएंगे, अब मैं क्या कहूँ
बंध गया हौंसले का जो बाँध, वक़्त का ऐसा मरहम क्या कहूँ

कुछ काम किया करों बाबा, जीने के अरमान भर दिए क्या कहूँ
इंसानियत के इन सुमन ने, भर दिया खुशबु से मुझे, क्या कहूँ
© कृष्णा'प्रेम'