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जीवन का गणित कविता
सूझ-बूझ से गणित को सरल बनाना पड़ता है कभी जोड़ना पड़ता है तो कभी घटाना पड़ता है गुणाकार और भागाकार खूब किया जाता है मगर जीवन का शेष, अंत में शून्य ही आता है
जीवन एक वृत्त है और ख़ुशी उसका केंद्र बिंदु जीवन को बड़ा बनाने के लिए खूब पैसा कमाते है स्वास्थ्य की परवाह किये बिना जी जान लगाते है हकीकत में हम खुशियों से बहुत दूर हो जाते है.
जीवन रुपी गणित के समस्या रुपी सवाल हर किसी की जिंदगी में आते है, इन समस्याओं से हम भाग नहीं पाते है थोड़ी कोशिश करने पर इसका हल पाते है.
© 🄷 𝓭𝓪𝓵𝓼𝓪𝓷𝓲𝔂𝓪
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