नजरे ढूंढ रही शाम है.
दिल खुद से ही खफा नजाने क्यूं परेशान है,
हो गया अंधेरा और नजरे ढूंढ रही शाम है।
खो गया जाने कहां जो कुछ
समय पहले सामने था ,
ये कुछ और नही इन चहेरे ,
की प्यारी मुस्कान है।
चल रही है हावायें जो,
तन्हाइयों को बाढाते हुऐ,
गुंजाइस है ले चल हमे भी वहां ,
जहां तेरा स्थान है।
दिल खुद से ही खफा नजाने क्यूं परेशान है,
हो गया अंधेरा और नजरे ढूंढ रही शाम है।
बह रही है जिन्दगी नदियों
की धार बनके,
मैं चल रही किनारों पर क्योंकि
ये दिल खुद से ही अनजान है।
गुम हूं इधर उधर न जाने
कितने ख्यालो ,
अब लग रहा है चेहरा पहचानने,
मे हम अभी नदान है।
कैसे करे कोई लोगो पे भारोसा,
जिसने खाया है अपनो से धोखा,
यूं खो गये न जाने कहां हम नजरे,
खुद की ही नही कर रही पहचान है।
दिल खुद से ही खफा नजाने क्यूं परेशान है,
हो गया अंधेरा और नजरे ढूंढ रही शाम है।
© Savitri..