...

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शाश्वत
तनु ऋंग भृंग,मतंग पाश
कतिपय संसय, किंचित फांस
संपूर्ण हृदय, सृष्टि वृत्त
जड़ सारस्वत ,मूल स्वांस
मृत्युंजय तू, शाश्वत
मत सोच बस देह, मात्र
सम्पूर्णता स्वयंमेव व्याप्त
सजगता कुंजी यंत्र
सत्संग मारुति, उद्देश्य राम
तब तक नहीं देह ,विश्राम।


© Gitanjali Kumari