...

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चिंतन
सागर की
अतुल गहराई में..
आसान जमाये बैठा हैं.
वो कतरा जो
आज अपने अस्तित्व का
चिंतन कर रहा हैं

कल तक तो वो उस
कलकल करती सरिता का हिस्सा था जो
उसे दुर्गम पहाड़ो से बहा कर.
लाई थीं समुन्द्र के मुहने तक े
और उससे पहले ऊँची पहाड़ी पर बसी एक ठोस बर्फ की
बस्ती का सभ्य नागरिक हुआ करता था

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