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सुर्ख़ गुलाब 🌹
स्वरचित रचना :- सुर्ख़ गुलाब 🌹

किसी पुरानी किताब में मिला ये
सुर्ख़ गुलाब,
किसी आँगन की बगिया में खिला
ये सुर्ख़ गुलाब।

कितना दर्द सहता है ये सुर्ख़ गुलाब
होकर अपनों से जुदा
बावफा सा रहता है ये सुर्ख़ गुलाब।

खुद टूटकर दिलों को जोड़ता है ये
सुर्ख़ गुलाब
कांटों में रहकर भी
महकना नहीं छोड़ता ये सुर्ख़ गुलाब।

किसी दुल्हन की सेज सजाता ये
सुर्ख़ गुलाब
किसी मय्यत की मायूसी छुपाता
ये सुर्ख़ गुलाब।

किसी मंदिर में हार बन जाता ये
सुर्ख़ गुलाब
फिर पंखुड़ियों में बिखर खुद से
हार जाता ये सुर्ख़ गुलाब।

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143