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शीर्षक - मर-मर जी रहा।
शीर्षक - मर-मर जी रहा।

दफ़्न है कुछ राज दिल में,
ज़ुबाँ पे लगा इक ताला है।
ज़हन में पल रहे निशाँ मेरे,
बदन में दर्दों का ज्वाला है।

टूटे हुए ख़्वाईश पड़े मेरे,
एहसासों में पड़ा छाला है।
फिर रहा हूँ लेकर जख़्म,
गले में ज़ख्मों का माला है।

यादों में घिरके रोया हूँ मैं,
फ़िर भी ख़ुदको संभाला है।
दे देता हूँ हौसला ख़ुदको,
पर उतरता नहीं निवाला है।

क्यूँ देता दस्तक़ ये अंधेरा,
क्यूँ ढ़क लेता मेरा उजाला है।
कोई राह साफ़ नहीं दिखता,
आँखों में छाया रंग काला है।

मर-मर जी रहा हूँ हर पल,
रात ने फ़िर ज़ख़्म उछाला है।
क़ाश ले जाए कोई फ़रिश्ता,
ख़्वाईश ज़हन ने ये पाला है।

©Musickingrk