...

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ग़ज़ल
घर भी कच्चा था हो गई बारिश
मेरी ह़ालत पे रो गई बारिश

मर गया छत न आई ह़िस्से में
दाग़ ग़ुर्बत के धो गई बारिश

ख़ून पी कर के जो बड़े होंगे
बीज ऐसे भी बो गई बारिश

तन पे कपड़े तलक नहीं और फिर
इक सितम ये भिगो गई बारिश

वो जो नाले के पास लेटा था
उसके पहलू में सो गई बारिश

क़हर बरपा था बे घरों पर, अब
घर बने हैं तो खो गई बारिश

मीटर/ बह़्र 2122. 1212. 22 / 112