...

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मजबूरी...
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
नाबालिग बच्चें करते मजदूरी हैं।

बिन चप्पल न देखते वो छांव-धूप हैं,
झूठ नहीं मजबूरी हैं,
होनी चाहिए जिन हाथों में किताब हैं,
वो छोटे बच्चें करते देखें मजदूरी हैं।

चाय कि टपरी हों या होता कोई बड़ा होटल हैं,
तुम जानों क्या क्या जरुरी हैं,

ऐ छोटू चाय ला, पोंछा लगा फिर देते कैसे गालियां हैं,
बड़े लोग भूलते देखें यूं इन्सानियत हैं,
वो भोले प्यारे बच्चे हंसकर सह लेते अपमान हैं,
बोलते साहब क्या करें पापी पेट का सवाल हैं,
शायद इसको ही कहते मजबूरी हैं।।

मुझे लगता हैं ये सब बदलना चाहिए।
लोग नन्हे बच्चों के हाथों में काम न देकर,
काश उन छोटे छोटे हाथों में थमा देंगे
कागज़, कलम और किताब...
सच में तब कहलाएगा मेंरा देश महान।।

please stop child labour...✍️✍️✍️