...

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सुकून 🤌🏻❤️



चांद को पाने की चाहत में
पाव से जमीं को जाते देखा है
जख्मों पर मरहम मिले या ना मिले
लोगों को घाव देते देखा है

इज जगत रीत को भूलते देखा है
कल तक लोग कुंआ से जल निकाल कर पीते थे
छप्पर की छांव में सुकून की नींद को लेते देखा है
आज घरों में पत्थर और फर्श दोनों हैं
मगर सुकून हर किसी के पास नहीं हैं
ना सुकून भरी नींद है
थोड़ा और सुकून की चाह में लोगों भटकते देखा है

घर छप्पर का हों या ईंट का
जब अपनो में अपनापन और
एक दुसरे के लिए वक्त ही नहीं हों
तो ऐसे जीवन का कोई मोल नहीं
मिट्टी का तन मिट्टी में मिलना है
तन किसी एक को सुख देता है
मगर मन और हृदय अनेक को सुख देता हैं

चंचल सा मन मेरा सुकून की चाह रखता है
यहां ढूंढा वहां ढूंढा सिर्फ़ दो वक्त का वक्त ढूंढता है
बांवरा सा है मन मेरा जो अगले सुबह की ओर देखता है
थोड़ा सा वक्त और मांगता है जो इसी में जी लो
अपना आखरी वक्त किसने देखा है ❤️

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