...

13 views

मोह
मोह है व्यक्त तो अर्थ है कैसा,
सोच है जैसी तो व्यक्ति है वैसा,
कागज़ के टुकड़ो का कर्ज है कैसा,
स्तब्ध हुँ सुन के शब्द है ऐसा,
वक़्त है मुश्किल फर्क है कैसा,
मोह है व्यक्त तो अर्थ है कैसा,
सोच है जैसी तो व्यक्ति है वैसा,
चंचल सा था हृदय वो कैसा,
दुर्लभ सा है वक़्त ये कैसा,
सिंदूरी सी सुबह के जैसा,
शांत है मन उस चंद्र के जैसा,
मोह है व्यक्त तो अर्थ है कैसा,
सोच है जैसी तो व्यक्ति है वैसा ।
© Ambuj Pathak