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ढल रहा सांझ सा तिल तिल गगन सा पिघल रहा
हर तेरे रंग में रंग रहा पल पल श्याम रंग ढल रहा।
मैं स्वयं खुद में ही नहीं, तुम मुझ में यही पर कहीं;
चित्त से चित ढूंढा गली गली, तू कहीं पर भी नहीं।
खाली सी जिन्दगी खली, कैसी है ये दिल की लगी;
ना तू नाही ज़िन्दगी मिली, चित्त से चित ढूंढी गली।
तू नैन में यात्रा सी चलती रही जीवन बेल ग़लती रही;
गली उस मोड़ पर मिली जहां ज़िन्दगी छोड़के चली।
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