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रीमा का मन सुबह से व्याकुल हो रहा था जैसे
कोई बहुत दूर जा रहा हो पर कौन ?
रीमा और अजय की शादी को 20 साल हुए थे
सब ठीक चल रहा था
पर जाने क्यों रीमा को लगने लगा अजय अब पहले जैसा नहीं रहा
अजय अब बात भी कम करता
आखिर अजय को हुआ क्या है
कहीं ऐसा तो नहीं नहीं नहीं
रीमा ने खुद को समझाया अजय मुझसे दूर नहीं होंगे कभी भी
रीमा ने खाना दोनों ने साथ बैठकर खाना खाया
पर अजय ऐसे चुप चाप खाता रहा जैसे अजनबी हो
अब तो पक्का हो गया अजय के मन मे कोई बात है

रीमा ने कई बार अजय को रिझाने की कोशिश की पर अजय ने ध्यान भी नहीं दिया
रीमा ने सोचा कोई बात नहीं पर वो अकेला क्यों सन्यासी बने मैं भी साथ मे जाऊँगी सेवा करने
रीमा ने अब सीधे ही पूछना सही समझा
क्या आप घर से चले जाना चाहते हैं क्या इसलिए मुझसे बोलते नहीं आप ?
अब अजय के पास कोई जवाब नहीं था
आप अगर निर्णय ले ही चुके है तो मैं भी साथ चलूँगी आपकी सेवा करने
है मेरी अनुगामिनी तुमने मेरी आंखे खोल दी मुझे लगता था घर से जाना ही ईश्वर को पाने का एक मात्र तरीका है पर तुमने एहसास करा दिया जीवनसाथी के काम आना उसके सुख दुःख मे साथ रहना भी ईश्वर की अनुभूति करा देता
रीमा मुस्कुराई बिना कुछ कहे अजय की आंखे खुल गई

अजय वापस से मुस्कुराने लगा रीमा का साथ देने लगा रीमा की छोटी छोटी बातों का ध्यान रखने लगा
दोनों साथ मे भक्ति करते

रीमा को अब काफी प्रफुल्लित लगता
उसने सोचा हो सकता है अजय के मन मे सन्यास का विचार इसलिए आया था वो इसी बात को जानने के लिए जिससे अजय अनभिज्ञ था की भक्ति कहीं भी हो सकती थी

अजय ने तो जाने का निर्णय ले लिया था पर रीमा ने जब कहा मुझे भी साथ ले चलिए तब अजय को लगा वो क्या खोजने जा रहा था क्या ये ईश्वर की खोज थी या परिवार से भागना अजय ने खुद को पूछा जवाब मिला वो शायद जिम्मेदारी से डर गया था अब नहीं है डर।

समाप्त
28/4/2024
12:56 प्रातः
मैं और मेरे एहसास