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दश्त ए तन्हाई में जीने का सलीका सिखिए
ये शिकस्ता बाम ओ दर भी हमसफर हों जायेंगे

दश्त ए तन्हाई में ऐ जान ए जहां लजा है
तेरे आवाज़ के साए तेरे होटों के साए
दश्त ए तन्हाई में दूरी के कस ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तेरे पहलू के सनम गुलाब

उठ रही है कहीं कुरबत से तेरी सास की आंच
अपनी खुश्बू से सुलगती मध्यम मध्यम
दूर उफक कर कहीं कतरा कतरा
गिर रही है कहीं तेरी दिलदार नज़र की सबनम

इस कदर प्यार से ए जान ए जहां रखा है
दिल के रूकसार पे इस वक्त तेरी याद ने हाथ
यूं गुमा होता है
ढल गया दिन आ गई वस्ल की रात