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इक़रार-ए-इश्क़ में खुद को आज़माना बाकी है,
दिल की हसरतों का अब फ़साना बाकी है।
तूने तोड़ दिया रिश्ता, हमें कोई ग़म नहीं,
दिल से दिल का आज भी मिलाना बाकी है।
दुनिया की राहों में खो गए हैं कई जनाब,
ख़्वाबों का अब भी मोल लगाना बाकी है।
वादा किया था हमने, निभाना है अपना हक़,
धोखेबाज़ियों का हिसाब चुकाना बाकी है।
जो प्यार दिया था तुमने, वो अमानत हमारी,
रफ़्ता रफ़्ता हर ज़ख़्म का दवा बनाना बाकी है।
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