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कभी सोचा न था! (Based on long distance relationships)
please Read full story and give your views about the story.

लड़की दीवानी सी जिसका नाम था हंसिका अपनी धुन में रहना पसंद करती थी
जोकि अब बच्चों की माँ बन चुकी थी। ख्वाब उसके अधूरे से
पूरा करने की चाहत रखती थी खूब मेहनत की आगे बढ़ने की ,
कुछ हासिल करने की ,लेकिन कुछ हाथ ना आया ।
खूबसूरत थी इतनी की सब ताका करते थे उसे, इच्छा रखते थे मन में उसे पाने की, कोशिश भी किया करते थे पाने की पर हाथ ना आती किसीके क्यूंकि उसके ज़ज्बात कुछ अलग थे। हंसिका डॉक्टर बनने की चाह रखती थी, एयरहोस्टेस बनने का भी ऑफर आया लेकिन उसकी खूबसूरती कुछ करने नहीं देती थी। माता पिता डरते थे कहीं हंसिका के साथ कुछ गलत न हो जाए पर अफसोस तब तो कुछ नहीं हुआ पर शादी के बाद एक नई कहानी ने मोड़ लिया जिससे वो अब तक सम्भाल नहीं पाई खुद को। वो आपको बाद में पता चलेगा, खैर अभी चलते हैं कैसे शुरू हुई यह कहानी।



एक दिन ऐसा आया कि उसके रिश्ते की बात चल पड़ी सुनकर वो स्तब्ध सी रह गई, क्योंकि पढ़ना था उसे आगे कुछ कर दिखाना था, नहीं मानी गई उसकी बात और ब्याह रचा दिया उसका। कैसे देखिये और मेहसूस कीजिए उन पल को इन शब्दों की जुबानी ~~
जब रिश्ते की बात आई तो वह खूब गुस्सा हुई, पर जिस दिन लडक़े वाले देखने आये तो वो हंसिका को देखकर स्तब्ध रह गए और फट से हाँ कर दिया। जब हंसिका उनके लिए चाय लेकर आई तो उसके साथ एक हंसी का वाक़या हुआ जिसे वो आज भी याद करके हंसती है!जब हंसिका चाय लाई तो थोड़ी घबराई सी थी उसने चाय का कप उठाकर जब दिया तो नजरे उठाकर देखा तो ये क्या हाय राम!ये कैसा है मुह चढ़ाकर चली गई।मन में यही सोचती रही कि कैसा लड़का है।
पर जब हंसिका को फिरसे बुलाया गया तो ये क्या सामने तो कोई और था खूबसूरत सा नौजवान और हंसिका की दिल की घंटी बज उठी और थोड़ा सा मन ही मन मुस्काई!फिर सोचा वो कौन था जिसे मैंने चाय दी थी तो पता चला वो तो लडक़े का बाप था फिर अंदर जाकर खूब हंसी आई थी।
पर जब उस नौजवान को देखा तो पता चला ये ही है जो मुझे देखने आया था और मन ही मन दिल ने हाँ कह दी।
फिर उससे अकेले में बात हुई तो पता चला थोड़ा
एटीट्यूड था पर दिल ने हाँ कह दिया उस नौजवान का नाम था
अव्यक्त। अव्यक्त को भी हंसिका पसंद आ गई वो ना कह ही नहीं पाया। रिश्ता पक्का हो गया, फिर क्या था उनके बीच प्रेम तो होना ही था दिल जो मिल चुके थे।
एक दिन अव्यक्त का कॉल आया हंसिका के घर पर फोन हंसिका ने उठाया कॉल ब्लैंक थी ,हंसिका ने फोन रख दिया ,जैसे ही आगे बढ़ी रिंग हुआ फोन फिरसे तो एक हैलो की आवाज सुनाई दी तो हंसिका पहचान गई किसका फोन है फिर उस व्यक्ती ने अड्रेस पूछा किसीका तो हंसिका ने रांग नंबर कहकर फोन रख दिया, फिर दोबारा फोन आया फिरसे हैलो और वही आवाज अब तो बिलकुल समझ गई हंसिका की ये अव्यक्त का ही कॉल था और अव्यक्त ने पूछा पहचाना मुझे, हंसिका ने फट से जवाब दिया हाँ क्यूँ नहीं अव्यक्त जी हो और दोनों हंसने लगे, फिर क्या था बातें होने लगी और पता ही नहीं चला दो घंटे बीत गए तभी देखा हंसिका की दादी उसके आसपास मंडरा रही थी शक की निगाहों से देख रही थी फिर क्या था फोन रखना प़डा फिर ऐसे ही धीरे धीरे बातें बढ़ती रहीं दोनों में प्रेम बढ़ता गया।
एक दिन अव्यक्त का कॉल आया और बोला क्या तुम मुझसे मिलने आओगे? हंसिका ने घरवालों के डर से मना कर दिया और कहा मुश्किल है लेकिन अव्यक्त कहाँ मानने वाला था उसे मिलने के लिए मना ही लिया और हंसिका ने जैसे तैसे अपनी माँ को मना लिया और मिलने चली गई और खूब घूमे और प्यार भरी बातें भी की पर जब घर लौटने लगे तो बहुत बड़ी बात हो गई जिसे सोचकर आज दोनों खूब हस्ते हैं।
जब वो दोनों वापस घर मोटरसाइकिल पर बैठकर मजे में जा रहे थे तो ये क्या हंसिका का बड़ा भाई उसके पीछे से मोटरसाइकिल पर आ रहा था और वो देखकर हैरान ये तो मेरी बहन जैसी लग रही है ,पीछे गए उनके तो पता चला दोनों ही थे, और अव्यक्त को पकड़ लिया और पूछा यहां कैसे ! तो बहाना लगा दिया काम से आया था औऱ चला गया, अब बारी थी हंसिका की बहुत डरी हुई थी भाई के डांटने से लेकिन भाई ने समझाया समझदारी से कि कच्चा रिश्ता है टूट न जाए, हंसिका को समझ आ गई बात। दिन बीते वक़्त आया रस्मों का,रिवाजों का ,सगाई हुई शादी हुई। हंसिका अपने ससुराल पहुँची स्वागत हुआ नई बहु का ,पड़ोसी भी देख रहे थे झाँक झाँक कर, चर्चे हो रहे थे नई बहु के कि कितनी खूबसूरत आई है।
घर में रस्में हुई हंसिका की ,रहने लगी घर में आराम से, फिर
आया खयाल उसे अपनी पढ़ाई का वो भी पूरी करनी है ,देवर ने पति ने मदद की पढ़ाई को जारी रखने में मेहनत की आगे बढ़ी ,डिग्री बढ़ाई ,बच्चे भी हुए, घर में सबको सहना भी पड़ा जैसे अक्सर हर लड़की को सहना पड़ता है। ख़ैर वो भी गुजर गया फिर एकदिन ऐसा आया उन्हें घर छोटा होने की वजह से अपना घर लेना पड़ा ,घर बदल गया अलग रहने लगे बहुत कोशिश की नौकरी पाने की अफसोस सपना पूरा ना हो सका, पता चला तीसरा बच्चा आनेवाला है फ़िर नौकरी का खयाल छोड़ दिया तीसरी भी बेटी हुई लोगों को बहुत दुःख हुआ कुछ बहुत खुश भी हुए कि चलो अच्छा हुआ तीन तीन बेटियों को संभालेंगे अब ना कुछ अच्छा कर पाएंगे टूट जायेंगे अंदर से पर अफसोस लोगों को होने लगा क्यूँ फर्क़ इनपर नहीं पड़ता है ये तो और अच्छे से रह रहे हैं तीन बेटियों के बाद भी।
अक्सर लोगोँ को गलत फ़हमी होती है कि सब कुछ इंसान करता है लेकिन वो भगवान करता है।
फिर जब तीसरी बेटी बड़ी हुई तो हंसिका को फिरसे उम्मीद जागने लगी अपने कल को और अच्छा बनाने के लिए फिर नौकरी ढूँढने लगी, नौकरी एक जगह लग भी गई परंतु परेशानी बहुत आने लगी सोचा बच्चों को कौन संभालेगा नौकरी छोड़ घर बैठ गई। सोचा अब बच्चों के लिए त्याग देती हूं उन्हें अच्छी शिक्षा देती हूं। घर बैठकर बोर हो जाती थी सोचती थी कुछ काम करूँ एक दिन एक सोशल मीडिया से पता चला गाने का एक एप आया सोचा उसमें गाकर वक़्त निकालूँ,गाने लगी कुछ गाने पति के साथ भी गाए मज़ा आने लगा पति ने एक दिन गाने से इंकार किया सोचा कोई नहीं उसने खुद ही गाने का फैसला किया।
एक दिन हंसिका को पता चला दुसरे लोगों के साथ भी गा सकते हैं तो वह गाने लगी और मज़ा आने लगा लोगों के कमेंट्स से और अच्छा लगने लगा।
एक दिन हंसिका ने एक गाना चुना गाने के लिए जिसके साथ गाना चाह रही थी वो अकाउंट फ़िर मिला नहीं सोचा दूसरे व्यक्ति के साथ गा लेती हूं, हंसिका ने दूसरे व्यक्ति को चुना उसकी आवाज़ उसे बहुत पसंद आई की बाद में उसकी फैन ही बन गई ।सोचा न था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी कि......to be continued.

No plagiarism....