एक किसान
किसी गाँव में एक किसान अपने बीवी-बच्चों के साथ रहा करता था। उसके पास एक बीगहा ज़मीन थी लेकिन बंज़र। वो बहुत दुखी रहा करता था। एक दिन उसकी बेटी को टायफायड हो गई और किसान के पास धन भी नहीं था वो बहुत दुखी था। वो सोच रहा था कि क्यूँ ना गाँव के साहूकार से कुछ कर्ज ले ले बाद में चुका देंगे। वो कई साहूकारों के पास गया लेकिन कोई कर्ज देने को तैयार ही नहीं था क्योंकि गाँव के सारे लोग जानते थे कि किसान आलसी है वो कर्ज कैसे चुकता करेगा। फिर एक दूसरे गाँव के एक साहूकार ने कर्ज देने को तैयार हो गया था पर वो इसके बदले कुछ गिरवी रखने को बोला। किसान ने कुछ देर सोचा फिर उसने साहूकार से बोला कि मेरे पास तो केवल बंज़र खेत है। तब साहूकार पैसे देने से मना कर दिया ये कह कर की भला मैं बंज़र खेत लेकर क्या करूँगा। तब किसान बहुत दुखी होकर लौट रहा था। फिर कुछ देर सोचने के बाद उसको ये खयाल आया कि लोग मुझे आलसी कहते हैं क्यूँ ना मैं अपने बंज़र खेत को ही जोत कर उर्वरक बना दूँ ।फिर अगले ही दिन वो हल लेकर खेत की ओर निकल पड़ा। बहुत देर तब खेत जोतने के बाद अब शाम होने को आई थी की तभी उसके हल से खेतों में कुछ टकराने की आवाज आई उसने उसी जगह फावड़े से खोदना शुरु किया की तभी एक मटका हीरों से भरा मिला और अब किसान उस मटके को घर ले आया और एक हीरा शहर में बेचकर अपनी बेटी का इलाज कराया और कुछ दिन बाद वो एक बहुत बड़ा साहूकार बन गया। इस कहनी से हमें ये सीख मिलती है कि जल्दी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और प्रयास से ईश्वर हमें कोई ना कोई रास्ता दिखा ही देते हैं ।
© Divya Prakash Mishra
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