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मियां जी - ४
मियां जी के बेमतलब हर किसी के मामले में दिलचस्पी लेने की आदत आज उन्हीं पर भारी पड़ गई थी।
इससे पहले अधिकारी अपनी किताब से उनके कर्मों का पृष्ठ खोल कर बताते, मियां जी की आंखों के सामने उनके सारी जिंदगी के पन्ने खुद ब खुद पलटने लगे
उन्हें याद आया किस तरह से उन्होंने अपने मां-बाप को खर्चे के डर से अपने साथ न रख कर अपने छोटे भाई के पास रहने दिया था।
अपनी बीवी के मना करने के बावजूद जायदाद का बड़ा हिस्सा बेईमानी से अपने नाम करवा लिया था।
किस तरह अपने बेटे की शादी में गाड़ी न मिलने की वजह से बारात को लौट आने की धमकी दे कर अपना उल्लू सीधा किया था।
किस तरह से पैसे को हमेशा हर किसी से ऊपर माना था।
कभी उन्होनें किसी जीव को जीव नहीं समझा,बस अपने आप को और अपनी बात अपनी इच्छाओं को ही अहमियत दी थी।
याद करने से भी कोई स्वर्ग जाने लायक कोई काम याद नहीं आ रहा था।
"अरे , इन्हें कैसे ले आए आप, इनका समय अभी नहीं आया है,जल्दी वापिस भेजो इन्हें " अधिकारी ने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया।
इससे पहले मियां जी कुछ समझ पाते , किसी ने उन्हें जोर से धक्का दे दिया।मियां जी नीचे गिर गए और झट से उनकी आंख खुल गई ।
"यह क्या हुआ ,क्या मैं ज़िंदा हूं.." वो ज़ोर से बोले ।
उनकी ऊंची आवाज़ सुन कर घर के सब सदस्य उनके पास एकत्रित हो गए।
मियां जी ने जो उनके साथ घटा वो सबको बताया।
सब बोले ," आपने कोई सपना देखा है"
"सच भी तो हो सकता है.." मियां जी घबराए हुए थे।
"ये सच था या सपना... ये तो आपको अपने ननिहाल से पता चल सकता है.. फोन कर के पूछ लीजिए,अगर सुलोचना आंटी ज़िंदा हैं तो ये सपना था,अगर नहीं तो आप साक्षात परब्रह्म परमात्मा से मिल कर आए हैं " ये सुझाव उनकी उस बहू ने दिया जिसको वह गरीब घर की समझ कर अपमानित करते थे और मूर्ख ही समझते थे।

मियां जी ने अपने मामा के घर फोन मिलाया वहां से उन्हें पता चला कि सुलोचना की रात को ही मृत्यु हो गई । सब लोग उसी के अंतिम संस्कार के लिए जा रहे हैं।
मियां जी के पांव के नीचे से जमीन निकल गई.. इसका मतलब वह स्वप्न नहीं सच था ।
"अब क्या करूं?" मियां जी को कुछ सूझ नहीं रहा था।
"करना क्या है, चलो सुलोचना दी के अंतिम संस्कार में चल कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।" उनकी पत्नी बोली।

मियां जी अब खुद में सुधार लाने का सोच रहे थे। अपनी यमलोक यात्रा की कहानी वो हर महफ़िल में सुनाते थे।
एक दिन उनके पोते ने उनसे पूछा,"दादा जी आप क्यों डरते हैं... मां तो कहती है आत्मा अजर अमर है, उसे न तो अग्नि जला सकती है और न ही पानी गीला कर सकता है, तो अगर भगवान सजा भी दे तो आत्मा को कोई कष्ट नहीं हो सकता " मियां जी को उसकी बात बड़ी अच्छी और सकून दायक लगी।
"हां तो भगवान अब हमारे कर्मों की सजा हमें हमारे इसी जन्म में दे देता है, ऊपर जाने का इंतज़ार नहीं करना होता उसके लिए।" उनकी बहू ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा और मियां जी के सकून को दोबारा डर में तब्दील कर दिया।
खैर ज्यादा बदलाव तो नहीं आया मगर सुना है मियां जी अब थोड़ा धर्म कर्म के कार्यों में दिलचस्पी लेने लगे हैं और उनके घरवाले भी थोड़े सकून से रहते हैं, मगर मोहल्ले में अब वो रौनक नहीं दिखती।

समाप्त


© Geeta Dhulia