...

19 views

भिक्षा
शिवरात्रि के दिन मंदिर में माथा टेकने के बाद मैं टीना भाभी के साथ थोड़ी देर बाहर सीढ़ियों पर बैठ गई। वहीं एक 15 - 16 साल की लड़की की तरफ ध्यान गया।वह मैंने मंदिर की सीढ़ियों के नीचे कतार में अन्य भिखारियों के साथ बैठी थी.. शायद पहली बार घर से बाहर आई थी.. बड़ी सकुचा कर सिमटी सी थी.. दूसरे भिखारियों से बिल्कुल अलग सा अंदाज़ था...बाकी सब पारंगत हो गए थे ..जब तक पैसा या कुछ खाने को न मिले तब तक पीछा करने में ,मगर वो चुप चाप बैठी थी।
मैं उसे काफ़ी देर देखती रही.. फिर थोड़े फल उसे देने लगी तो वो बोली
"दीदी.. आज दो ही दे दो, बाकी सब ने भी दिए हैं,इतना सब कहां संभालूंगी,सब खराब हो जायेगा.. हो सके तो कल दे देना..."
"ले लो..कल तो नहीं आ पाऊंगी, रोज़ आना नहीं हो पाता है , वैसे लोग तो आते ही हैं,कोई न कोई कल भी दे देगा" मैंने कहा
"कल इतनी भीड़ नहीं होगी.. आज त्यौहार पर सब दे रहे हैं.. कल कोई न कोई बस 1 या 2 रुपया ही देगा" वह बोली।
"अच्छा फल नहीं तो कुछ पैसे ले लो.. जिस चीज की जरूरत हो.. खुद ले लेना" कहते हुए मैंने उसे थोड़े पैसे देने की कोशिश की।
"नहीं दीदी.. पैसे तो बाबा छीन कर दारू में उड़ा देता है ।हो सके तो आटा या दूध दिलवा दो ' उसने सकुचाते हुए बोला
"ठीक है.." टीना भाभी के मना करने के बावजूद भी मैंने पास की दुकान से उसे दूध की दो थैलियां दिलवा दी। उसे सामान देते हुए मैंने पूछा "पढ़ती हो?"
"नहीं दीदी.. " उसने जवाब में कहा।
" यहां क्यों भीख मांगती हो?कोई काम क्यों नहीं करती?" मैंने पूछा
" मां कहती है,काम करने से ज्यादा यहां भीख मांग कर मिल जाता है..." उसने सामान पास रखे एक बड़े से थैले में रखते हुए कहा।
मैं उसकी सोच पर हैरान रह गई।
"और कर लो समाजसेवा.. मना किया था न ,
तुम जैसे ही इन लोगों में कामचोरी और मुफ्तखोरी की आदत को बढ़ावा देते हैं।" टीना भाभी को जैसे मुझे ताना मारने का मौका मिल गया।
मैं गुमसुम सी, सर झुका उनके साथ उनकी नसीहतों को सुनती हुई घर वापिस आ गई।

© Geeta Dhulia