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बूढ़ी अम्मा भाग ९४
सौभ्य के पिताजी सौभ्य से ..आज दफ़्तर से जल्दी आ गए।
सौभ्य ..वो आज दफ़्तर में मन ही नहीं लग रहा था
शायद आप कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन मैंने
अनसुना कर दिया था।
दफ़्तर पहुँच तो गया पर सारा दिन यही सोचता रहा
पता नहीं पिताजी ऐसी कौन सी बात थी जो वो
मुझे बताना चाह रहे थे मैंने सुनी नहीं।
सौभ्य के पिताजी हँसते हुए सौभ्य के कान खींचने
लगे।हँसते हुए कहने लगे ..तो अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे।
सौभ्य के पिताजी ..वैसे तुम्हे पता कैसे लगा मैं कोयली के घर पे हूँ।
बेर वाली अम्मा . .अरे भाईसाहब सौभ्य तो रोज ही
यहां आते हैं।
सौभ्य के पिताजी .. सौभ्य से बेटा ये जो अम्मा कह रही हैं वो सब सच है क्या ?
सौभ्य कुछ कहता उससे पहले ही कोयली चाय व थोड़े बिस्किट ले आई।
सौभ्य के पिताजी हमें आपकी बेटी पसन्द है।
अब आप बता दीजिए बरात लेकर कहाँ आएं।
क्योंकि आपके इस मकान पे तो बुलडोजर चलने
वाला है।
सौभ्य ..पिताजी मैं स्टे आर्डर लेकर आ गया हूँ।
कोयली ये सुनते ही खुशी से माँ से लिपट गई।
दोनों की आँखों से ही अश्रु की धारा बह रही थी।
कोयली के पिताजी सौभ्य से..
हमारे घर भगवान ने बेटे के रूप में तुम्हे भेज दिया
है। जो सारे कर्तव्य निभा रहा है।
सौभ्य . .पिताजी एक कमी तो अभी भी बाकि है
बेटा समझते हो तो वो कमी भी पूरी कर दो।
कोयली के पिता ..अब तो शादी का जश्न भी तो
मनाना है।
उस कमी के बिना तो जश्न अधूरा रह जाएगा।
सौभ्य ..क्या आज आपको नहीं लगता इस कमी ने
आपको कहीं का नहीं छोड़ा।
जिस पैसे से इसकी किताब आती उन पैसों को
आपने दारु पीने में उड़ा दिया।
कितनी बार अपशब्द कहे जो आपको नहीं कहने
चाहिए थे।आप तो शराब के नशे में धुत रहते थे
लोगों की बातें तो आपकी बेटी व अम्मा को
सुननी पड़ती थी।
कभी आपने सोचा ये दोनों कितनी मुश्किल से
आपका घर चलाती थीं।
कोयली के पिताजी सौभ्य की बातों से शर्म से गढ़े
जा रहे थे।
सौभ्य के पिताजी ..चल अब बस भी कर चल
माफी मांग।
कोयली के पिताजी माफ़ी तो मुझे माँगनी चाहिए।
हाथ जोड़ते हुए सौभ्य और सौभ्य के पिताजी के
आगे अब हम कभी शराब को हाथ भी न लगाएँगे।
© Manju Pandey Choubey