पन्ना और चंदन का वार्तालाप
(all are my words not copied )
कहानी दीपदान उत्सव की है ।
कुंवर सिंह को पन्ना जो धाय मां थी वो उन्हें उत्सव देखने से रोकती है तो ।
कुंवर उदय सिंह नाराज होकर बिना भोजन करे आज चंदन के बिस्तर पर सो जाते है ।
चंदन ये पन्ना का अपना पुत्र है ।
और आज व्याकुल चंदन बाहर से आया है और मां से कहता है ।।
मां ,,मां ,, आज मेरा मन अशांत है और बेचैन है ।
मां आज मुझे अपने हाथो से भोजन करा कर लोरी सुनाकर सुलाओ ना मां।।
चंदन मां से कहता मां आज लग रहा है जैसे दशो दिशाएं और आठो याम घिर कर मुझे पर चढ़ाई करना चाहते हो ।
ऐसा लग रहा है जैसे काली आज रण चंडी का वेश धर मेरा संहार करने आ रही है।।
ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शरीर की धमनियों में रक्त प्रवाह चार गुना हो गया हो ।
और प्रत्येक कोशिका में अनगिनत विभाजन हो रहे हो ।।
लग रहा है सूर्य सदा के लिए अस्त हो रहा हो ।
एक बहुत बड़ा बोझ मेरे सीने पर रखा है ।
मां और आज मैं इसके तले दबा जा रहा हूं।।
मां आज मेरे बल की क्षति क्यू हो गई मां ।
मेरा वीरत्व्य मेरे नियंत्रण में नहीं है मां।।
पन्ना समझ गई थी , ये उत्सव का आयोजन कोई ।
त्योहार का मनाना नही अपितु कुंवर उदय सिंह के प्रति रचा गया षडयंत्र है ।।
वो समझ गई , आज समय आ गया ।
मेरे देशप्रेमी होने का कर्ज चुकाने का ।
आज समय आ गया ,राजमहल के नमक का कर्ज चुकाने का ।।
वो समझ गई मेरे पुत्र के अंतर्मन में ये डर आज आने वाले भूचाल का प्रतीक है ।
आज अनहोनी होगी ।
आज कुंवर पर विपतियो का शिखर टूटेगा ।
आज कुंवर पर आन्नय हावी होगा ।।
आज दीपदान नही पुत्रों के प्राणों का दान होगा ।
आज दीप दान उत्सव मे राजमहल का दीपक जीवनभर के लिए बुझाया जायेगा ।
आज ये प्रकाश राजमहल के अंधेरे को संकेत करता हुआ ।
मेरे पुत्र के अंतर्मन भेद रहा है।।
(और अब वो पुत्र को समझाती है )
""""है पुत्र वीर ,अधीर ,सुशील।।
यही समय है कर्तव्य निभाने का ।।
वर्षो से राजमहल के खाए।।
अन्न का कर्ज चुकाने का ।।
सूरज चांद भी ।।
भूलेंगे नही तेरी कुर्बानी ।।
तेरा नाम भी अमर रहेगा ।
जब तक है नदिया मे पानी ।।
और इस तरह वो अपने पुत्र को सुला देती है ।।।
© Sarthak writings
कहानी दीपदान उत्सव की है ।
कुंवर सिंह को पन्ना जो धाय मां थी वो उन्हें उत्सव देखने से रोकती है तो ।
कुंवर उदय सिंह नाराज होकर बिना भोजन करे आज चंदन के बिस्तर पर सो जाते है ।
चंदन ये पन्ना का अपना पुत्र है ।
और आज व्याकुल चंदन बाहर से आया है और मां से कहता है ।।
मां ,,मां ,, आज मेरा मन अशांत है और बेचैन है ।
मां आज मुझे अपने हाथो से भोजन करा कर लोरी सुनाकर सुलाओ ना मां।।
चंदन मां से कहता मां आज लग रहा है जैसे दशो दिशाएं और आठो याम घिर कर मुझे पर चढ़ाई करना चाहते हो ।
ऐसा लग रहा है जैसे काली आज रण चंडी का वेश धर मेरा संहार करने आ रही है।।
ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शरीर की धमनियों में रक्त प्रवाह चार गुना हो गया हो ।
और प्रत्येक कोशिका में अनगिनत विभाजन हो रहे हो ।।
लग रहा है सूर्य सदा के लिए अस्त हो रहा हो ।
एक बहुत बड़ा बोझ मेरे सीने पर रखा है ।
मां और आज मैं इसके तले दबा जा रहा हूं।।
मां आज मेरे बल की क्षति क्यू हो गई मां ।
मेरा वीरत्व्य मेरे नियंत्रण में नहीं है मां।।
पन्ना समझ गई थी , ये उत्सव का आयोजन कोई ।
त्योहार का मनाना नही अपितु कुंवर उदय सिंह के प्रति रचा गया षडयंत्र है ।।
वो समझ गई , आज समय आ गया ।
मेरे देशप्रेमी होने का कर्ज चुकाने का ।
आज समय आ गया ,राजमहल के नमक का कर्ज चुकाने का ।।
वो समझ गई मेरे पुत्र के अंतर्मन में ये डर आज आने वाले भूचाल का प्रतीक है ।
आज अनहोनी होगी ।
आज कुंवर पर विपतियो का शिखर टूटेगा ।
आज कुंवर पर आन्नय हावी होगा ।।
आज दीपदान नही पुत्रों के प्राणों का दान होगा ।
आज दीप दान उत्सव मे राजमहल का दीपक जीवनभर के लिए बुझाया जायेगा ।
आज ये प्रकाश राजमहल के अंधेरे को संकेत करता हुआ ।
मेरे पुत्र के अंतर्मन भेद रहा है।।
(और अब वो पुत्र को समझाती है )
""""है पुत्र वीर ,अधीर ,सुशील।।
यही समय है कर्तव्य निभाने का ।।
वर्षो से राजमहल के खाए।।
अन्न का कर्ज चुकाने का ।।
सूरज चांद भी ।।
भूलेंगे नही तेरी कुर्बानी ।।
तेरा नाम भी अमर रहेगा ।
जब तक है नदिया मे पानी ।।
और इस तरह वो अपने पुत्र को सुला देती है ।।।
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