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चिट्ठी
#चिट्ठी
लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी।
- क्या सुप्रिया को पता चल गया होगा कि मुझे वो चिट्ठी किसने भेजी है?लेकिन कैसे हमने तो तमाम कोशिशें कर ली थीं, पता लगाने की।लगभग जानने वाले सब लड़कों की लिखावट चेक की।बातों बातों में उनसे उगलबाने की कोशिश भी की।पर कुछ हाथ नहीं लगा। उस चिट्ठी में जो तड़प थी ,बेचैनी थी ,,,वो मुझे भी अपनी गिरफ्त में ले रही थी।,"सोचते सोचते निकिता इतना खो गई कि उसको पता ही नहीं चला सुप्रिया के आने का।
-अरे मैडम कहां खोई हुई हो ?इतनी आवाजें दीं तुमको पर तुम हो की ,,,,
-सॉरी सुप्रिया मुझे सच में पता नहीं चला तुम्हारे आने का।बताओ ना तुम्हें क्या पता चला उस चिट्ठी के बारे में ।किसने भेजी होगी वो,जल्दी बताओ ना।
-अरे अरे सांस लो पहले फिर बताती हूं।सुनो मुझे ये तो पता चल गया है कि वो जनाब हमारी ही क्लास में पढ़ता है।पर ये नहीं मालूम चल पाया कि वो है कौन?
-पर तुम्हें ये कैसे पता चला कि वो हमारी क्लास में ही है और अगर है भी तो सौ लड़कों में से कैसे पता लगाएंगे की कौन है?
-ये तो मुझे सूरज से पता चला।उसने बताया कि उसके हॉस्टल में भी कुछ लड़के चिट्ठी की बात कर रहे थे।वो सब अपनी क्लास के ही थे ।उसने बताया जब उसने उनसे पूछा तो वो बात को टाल गए।पर तू फिकर ना कर ,जल्दी ही पता लग जायेगा।
-कैसे फिक्र न करूं?जैसे उसने लिखा था चिट्ठी में ,उससे तो लग रहा था उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है।मुझे तो डर लग रहा है।
-तू डर मत। मैं जानती हूं ऐसे आशिकों को ।ये सब लड़की को इंप्रेस करने के लिए लिखते हैं और मुझे तो लग रहा है की तू हो भी गई है।
-यार कैसी बातें करती है,मुझे तो बस उसकी चिंता हो रही है।वैसे भी चिट्ठी को देख कर लग ही रहा है की ये उसने खून से लिखी है।
-कैसा खून ?कोई खून नहीं है और अगर है भी तो क्या पता उसका है या किसी जानवर का।,"ये कहकर वो इतना ज़ोर से हंसी की उसको ये भी भूल गया कि वो लाइब्रेरी में बैठी हैं"।
-अरे धीरे हंसो सब देख रहे हैं हमें।
-ok ok,,, चलो यहां से चलते हैं। तू भी न अब ज्यादा मत सोच।हम जल्दी से उस आशिक को तुम्हारे सामने हाज़िर कर देंगे।,"कहते हुए सुप्रिया ,निकिता का हाथ पकड़ कर उसे खींचते हुए वहां से ले गई"।
तीन महीने होने को आये थे अब लेकिन उस चिट्ठी वाले का पता अभी तक चल नहीं पाया ।पेपर आने वाले थे इसलिए सभी व्यस्त भी हो गए थे।निकिता भी अब उस बात को भूल भाल गई थी।उसने मान लिया था की वो किसी की कोई शरारत ही थी।आज उसका अंग्रेजी का पेपर था।वो जब पेपर देकर बाहर निकली बहुत खुश थी।कुछ देर सबसे पेपर के बारे में डिस्कशन किया और फिर अकेली घर की ओर चल पड़ी।अभी थोड़ी दूर ही गई होगी की उसको लगा कोई उसका पीछा कर रहा है।पीछे मुड़ के देखती तो कोई नहीं।अब उसको डर लगने लगा था।वो तेज़ तेज़ चलने लगी कि तभी एक लड़का उसके सामने आ कर खड़ा हो गया।था तो वो उसकी क्लास का ही पर बात कभी नहीं हुई थी उनकी।नाम भी नहीं जानती थी उसका।
-क्या बात है,तुम क्यों मेरे पीछा कर रहे हो?,"उसने अपने डर को छुपाते हुए कहा"।
-सुनो निकिता मैं समीर हूं। मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा। मैं तो तुमसे कुछ बात करना चाहता था पर समझ नहीं आ रही की कैसे करूं।
-कहो समीर,क्या कहना चाहते हो?,"निकिता अबतक उस चिट्ठी को भूल चुकी थी"।
-निकिता तुम उमेश को तो जानती हो न जो हमारी क्लास में है?
-नहीं समीर ,दरअसल मैं डे स्कॉलर हूं तो बस अपना पीरियड लगाया और सीधा घर ,मेरी ज्यादा जान पहचान किसी से है नहीं,,,क्या हुआ उमेश को,"निकिता ने बात खतम करते हुए कहा"।
-वो ,,,वो उसने तुम्हे चिट्ठी भी लिखी थी।उसने तो मुझे तुम्हें ये सब बताने से मना किया था पर,,,,"समीर रुकते हुए बोला"।
-चिट्ठी,,,निकिता को उस चिट्ठी में लिखा एक एक शब्द याद आ गया था,,,वो चिट्ठी उमेश ने लिखी थी।पर वो कभी मेरे सामने तो आया ही नहीं,,,और उसको मुझसे,,,ऐसे कैसे,"निकिता बड़बड़ाते हुए बोल रही थी।
-हां निकिता वो कभी तुम्हारे सामने नहीं आया लेकिन उसके ख्यालों में तुम्हारे सिवा और कुछ नहीं।मैंने कितनी बार उसको कहा भी की मैं बात करता हूं निकिता से।लेकिन उसने हरबार मना कर दिया बल्कि मुझे कसम भी दी की मैं तुम्हें कभी न बताऊं।
-तो अब क्यों बता रहे हो मुझे,"निकिता परेशान होते हुए बोली"।
-कभी न बताता अगर आज उसको उसके पापा घर न ले गए होते।
-घर,,,पर पेपर ,,,,और घर क्यों
-पेपर देने की हालत में वो नहीं है।उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया है।उसको तुम्हारे सिवा कुछ नहीं सूझता। न खाना न पीना न घूमना न पढ़ना
कुछ भी नहीं।उसकी ऐसी हालत देख मैंने उसके पापा को फोन किया था की इसको ले जाओ यहां से।
-मुझसे ,,,मुझसे क्या चाहते हो,"निकिता के हाथ पैर कांपने लग पड़े थे।
-प्लीज तुम एक बार उससे बात कर लो।हो सकता है उसकी हालत सुधर जाए।
- लेकिन मैं क्या बात करूंगी,,मुझे तो कुछ पता ही नहीं।नहीं ये मुझसे नहीं होगा।प्लीज मुझे माफ कर दो तुम,"कहते हुए निकिता वहां से भाग गई।
समीर दूर तक उसको जाते हुए देखता रहा ।