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लव इफेक्ट - पार्ट वन
कहते है कि प्यार की अच्छी या बुरी यादें हमेशा दिल में जिंदा रहती है । जिसे हम लाख भूलना चाहे फिर वो मन-मस्तिष्क से मिटती नही, बस वक़्त और हालात के साथ स्मृति चिन्ह के रूप में दृश्यमान होती है । कुछ ऐसे ही खट्टी-मीठी स्मृतियां मेरे जीवन में भी मौजूद है । जो कोलेज के वक्त में मुझे काफ़ी हद तक प्रभावित करके रख दिया था ।

मैंने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद शहर की बड़ी कोलेज में एडमिशन लिया । उस वक्त मन में उमंग उत्साह की तरंग दौड़ रही थीं कोलेज लाइफ को जीने के लिए बड़ा ही उत्सुक था । नये लोग, नये दोस्त से मिलने के लिए क्योंकि मैं ग्रामीण अंचलों से ताल्लुकात रखता था । इसलिए थोड़ा संस्कारित और प्रामाणिक टाइप था । काम के सिवाय किसी से ज्यादा बात हीं नहीं करता था । क्योंकि गांव में सुना था कि शहर के लोग उल्लु ज्यादा बनाते है, जरा सोच, समझकर दुकान पर ज़रूरत का साधन सामग्री खरीद लेना वर्ना भोले-भाले इंसान को देखकर दुकानदार चिकनी-चुपडी बातें में भरमार कर लूट लेते है, जरा इनसे बचकर रहिए । नहीं तो खाली हाथ पैदल गांव वापस लौटना पड़ेगा । उनका यह कहना भी स्वाभाविक था ।

अब कोलेज के साथ होस्टेल में रहने के लिए भी दाखिला मिल गया था । जो मेरे लिए खुशी की बात थी । इसलिए सब-कुछ लेकर शहर में रहने आ गया था। दुसरे दिन फटाफट तैयार होकर कोलेज चला गया । लेकिन पता नहीं चलता किस क्लास रूम में किस सब्जेक्ट का लेक्चर चल रहा है । क्योंकि कोलेज के बाहर से लेकर अंदर तक बहुत भीड़-भाड़ से हाउसफुल थी । इसलिए ढूंढना थोड़ा मुश्किल था, पर नामुमकिन नहीं था जैसे तैसे अंजान स्टूडेंट्स से पूछता हुआ मैं सायकोलॉजी के क्लास रूम तक पहुंच गया । वहा करीब एक घंटे का लेक्चर ऐटेन किया फिर ब्रेक के बाद तुरंत बहार चला आया । तभी वहां देखा कि कोई गर्लफ्रेंड लेकर घुम रहा था, कोई गर्लफ्रेंड से गुफ्तगू करने व्यस्त था, कोई मोबाइल लेकर सेल्फ़ी लेने उतावला था, कोई बावरा बनकर बाइक से स्टंट या स्टाइल मार रहा था, तो कोई दबंगों की तरह फ़ालतू की हिरोगिरी दिखा रहा था । यह सब दृश्य देखकर थोड़ा अचंभित था लेकिन मन से मुस्कुरा भी रहा था ।

ऐसे चलते सिलसिले में कुछ अच्छे दोस्त भी बन गए । साथ में कविता, शायरी लिखकर नोटिस बोर्ड पर प्यून के माध्यम से चिपकाया करता था । जिससे पढ़कर दूसरों के प्रसंशा का पात्र भी बनता था । दोस्तों की वाहवाही भी मिलती थी ।

एकबार मेरे दोस्त ने हंसते हुए कहा- " यार..शेखर.. तुम्हारे तो कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं तुम तो ठिक ठाक से कविता, शायरी लिख देते हो, इसलिए कई लड़कियां इंप्रेस हो जाएंगी, जरा लव के लिए वन चान्स ट्राय तो बनता हैं । क्योंकि यह कोलेज लाइफ दुबारा नहीं मिलेगी । वैसे मुझ ही देख लें मेरी दो-दो गर्लफ्रेंड के साथ चक्कर चल रहा है, वो भी मोबाइल पर दोनों को हेन्डल कर लेता हूं । फिर भी कोई दिक्कत नहीं ।"

मैंने कहा- " भाई मुझे इतना पहाड़ पर मत चढ़ाओं, मैं जमीन पर ही ठीक हूं, खैर.. गर्लफ्रेंड की बात तो आगे देख लूंगा, पर झूठ बोलकर किसी को फंसाना मुझे हरगिज़ नहीं आता । क्योंकि लाख झूठ बोलकर किसी को पाने के बजाय एक सच बोलकर उसे को देना मेरे लिए बेहतर होगा ।"

दोस्तने सलाह देते कहा - "शेखर ऐसी बातें सिर्फ किताबों के पन्नों में अच्छी लगती हैं लेकिन रियल लाइफ में आज की जेनरेशन कहा मानती है ?"

मैंने तुरंत सुनकर कहा - " भाई यह आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करता हैं कि आप दुःख कारण बनना चाहते हैं या सुख का कारक, यह केवल आपको उचित-अनुचित निर्णय पर आधार रखता है ।"

इतने में एक दूसरे दोस्त ने कहा " भाई इश्क आग का दरिया है तैर कर जाना है । फिर ड़र किस बात का है, बेफ्रिक से आज कर लें तू इश्क कल किसने देखा है ।"

" अरे..साले फिल्म डायलोग मारके हमें पानी में डूबोना चाहता है या किसी के हाथों पिटवाने का इरादा तो नहीं हैं ।"

इतने में ग्राउंड पर करीब सौ मिटर दूरी पर एक मज़ेदार, हास्यास्पद दृश्य उत्पन्न हुआ । वहा प्रेमी जोड़ा छोटे पेड़ के नीचे प्यार में डूबा था । तभी किसी मस्तीखोर छात्र ने जोर से पेड़ हिला दिया। जैसे कोई भूत पीछे पड़ा हो वैसे वो दोनों ज़ोरदार भागे, मानो रेस लगाई हो वैसे दौड़े थें ।यह देखकर हम हंस हंस कर लौट पोट हो गएं ।

एक दिन की बात है जब मैं लेक्चर खत्म होने के बाद क्लास रूम से बाहर निकलकर रहा था तभी किसी लड़की ने पीछे से जोर से पुकारा- "शेखर जरा रूको ? "
मैंने पलटकर देखा तो एक खूबसूरत लड़की पास आकर बोली - " आप बहुत बढ़िया हिंदी में कविता लिखते हो, क्योंकि मेरा मुख्य सब्जेक्ट हिंदी है इसलिए मुझे पढ़ने का बहुत शौक है ।"

मैंने प्रत्युत्तर देते हुए कहा- " यह तो ओर भी अच्छी बात हैं, आप हिंदी में रूचि रखते हो, वर्ना हम ठहरे सायकोलॉजी के स्टूडेंट ।"

उसने बात पर जोर देते हुए कहा - "अरे.. वाह आप तो बड़े दिलचस्प इंसान निकले, मन-मस्तिष्क को पढ़ने का हूनर रखते हैं, फिर दिल की गहराइयों को टटोलकर प्यार भरी कविता भी लिखने का भी जज़्बा रखते हैं ।"

मैंने उदार स्वभाव में कहा कि" वैसे हम कवि या शायर तो नहीं हैं किन्तु कभी कभी फुर्सत के वक्त में लिखने का थोड़ा प्रयास अवश्य कर लेते है, खुद को तसल्ली देने के लिए ।"

उसने सुनकर कहा कि " यह बात भी ठीक है लेकिन बातों बातों में मैं अपना नाम बताना भी भूल गए । मेरा नाम ज्योति है, जरा याद रखिए, न जाने कब हमारी दुबारा मुलाकात हो जाएं कैसी को मालूम नहीं ।"

मैंने हंसते हुए कहा- " हां.. क्यूं नहीं ज़रूर याद रखूंगा ।"

" थैंक्यू कल मिलते हैं कहकर वो लड़की वापस क्लास रूम तरफ चलीं गयी ।"

इसके बाद में लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने चला गया । लेकिन इस बार मन पढ़ने के बजाय उसके आंखों की गहराईयों में डूबने लगा था, जैसे कोई अलग एहसास का प्रवाह मेरे अंदर बहनें लगा था । फिर मैंने तुरंत एक काव्य लिख दीं ।
कैसे कहूं मैं, अल्प हृदय से,
विस्तृत प्रेम की कहानी , जरा तुम आकर,
यह प्रश्न हल कर दों , कबसे में असमंजस हूं,
एक तरफ तुम हो, दूसरी तरफ़ मैं,
दो तटों के बीच जाऊं कहां ?
न मल्लाह, न पतवार, मेरी कश्ती मझधार में कबसे बेहाल है, मन के तेज़ थपेड़ों के आगे,
मैं रिश्ता निर्धारित करूं या प्राण न्यौछावर करूं ।

फिर क्या था यह काव्य रचना मैंने नोटिस बोर्ड पर टांग दी, अगले दिन वो पढ़कर फिर से मुझे टकराई गयी ।
" अरे.. वाह शेखर आज तो आपने कमाल कविता लिखी हैं ।"
मैंने आभार प्रकट करते हुए कहा- " यह तो आपकी मेहरबानी है।"
ज्योति जवाब दिया - " ऐसा हैं तो ठीक है, चल यार.. आज आपको कुल्हड़ वाली मीठी-मीठी चाय पिलाती हूं ।"

मैने वास्तव में कहा - " अभी तो लेक्चर हैं कल अवश्य चाय पीएंगे ।"

उसने कहा- " यार.., एक लेक्चर छूट जाने से क्या फ़र्क पड़ेगा । आज मेरा बढ़िया मूड़ बना है, अगर तुम साथ में आते हो तो ओर मज़ा आएगा ।
यह सुनकर उसे मना नहीं कर पाया । वैसे में चाय तो पीता नहीं था लेकिन उसका दिल रखने के लिए साथ में चला गया, शायद यह मेरी महत्वाकांक्षा प्रमाण था या प्रेम पाने की लालशा जो मुझे उसी ओर खिंच जा रही थीं ।
तभी ज्योति ने कहा- "भैया.., दो कटिंग शुद्ध वाली चाय देना ?"
हां.., बिल्कुल कहकर वो पांच मिनट में दो कुल्हड़ वाली चाय लाकर हाथों में थमा दीं ।"

मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा- " एक अरसे बाद माँ के हाथों से बनीं हो ऐसी मीठी चाय पी रहा हूं ।"

ज्योति ने जिज्ञासा से मेरी आंखों में देखकर पूछा- " क्या वाकई में इतनी अच्छी चाय बनीं हैं ?"

मैंने सिर हिलाते हुए कहा- " ज़ी बिल्कुल, मन को फ्रेंश कर दिया ।"

ज्योति ने हल्की-फुल्की स्माइल देते हुए कहा कि- " खैर.. अब तो इस चाय के बहाने अक्सर.. हम मिलते रहेंगे और दो-चार बातों पे जमकर गप्पे भी मारेंगे, बड़ा मज़ा आएगा ।"

मैंने चलते हुए कहा- " हां.. वक़्त मिला तो जरूर हम मिलेंगे ।"

फिर मैं वापस होस्टल चला आया । उस दरम्यान दो दिन की छुट्टी कोलेज में पड गयीं । लेकिन मेरे लिए दो बरस जैसे लंबे दिन हो गए हो वैसा आभास हो रहा था । शायद यह प्रेम ही प्रभाव था जो मेरे दिलो-दिमाग पर धीरे धीरे हावि होने लगा था । इसलिए स्वयं को मनाने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन सब निर्थक साबित हुएं । फिर मन से कहता कि बेटा पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें, इस प्यार के कुएं में मत कूद, वर्ना बर्बाद हो जाएगा या आबाद । लेकिन ज़िद्द दिल कहां दिमाग की बात सुनता हैं वो तो प्यार की बात पे अड़ा था । फिर क्या था अब मैंने भी ठान लिया कि पुरे जज्बें ए जुनून से इश्क करेंगें, चाहें ग़म मिलें या खुशी कोई बात नहीं सब सह लेंगे । लेकिन इश्क़-विश्क़ में खुद को हद से ज्यादा जलाकर देखेंगे ।

अब तो इस ख़ाली दिल में भी अरमान के बंवडर बेझिझक उमड़ ने लगें थें । अगली सुबह उधेड़-बुन की तरह कोलेज चला गया । एक घंटे का लेक्चर भरकर सीधा लाइब्रेरी में चला गया । वहा किताब पढ़ने में व्यस्त हुआ था कि तभी ज्योति आ पहुंचीं । वो देखकर शीघ्र बोली- " शेखर तुम तो बड़े पढ़ाकू निकलें, किन्तु मैंने तुम्हें कहा- कहा नहीं ढूंढा ? फिर मैंने शांति से दिमाग लगाया कि शायद लाईब्रेरी में हो सकता है ।"

" हां.. मैं अक्सर क़िताबें और न्यूज़ पेपर पढ़ने के वास्ते लाइब्रेरी में चला आता हूं । इसलिए बाहर कम दिखने मिलता हूं । "

"अरे..यह तो ओर भी अच्छी बात है कहकर वो मेरे सामने बैठ गयी । जैसे प्यार जताने का प्रयत्न करती हो वैसा आभास भीतर प्रतीत हो रहा था ।

मैंने कहा- " कभी-कभी तुम भी किताबें पढ़ने के लिए लाइब्रेरी में चली आना । इस बहाने हमारी मुलाकात भी हो जाएंगी ।"

" ज़ी बिल्कुल,अरे .. शेखर तुम्हारे बाल को क्या हुआ है ? जो आज घोंसले जैसे उखड़े उखड़े लग रहें है, क्या सुबह कगीं ठिक से नहीं चलाई ?"

मैंने बालों को चैक करते हुए कहा- "शायद उतावलेपन में भूल गया होगा ।"

वो दयालु भाव से बोली- " शेखर...कोई बात नहीं मैं अभी ठीक कर देती हूं, ऐसा कहकर ज्योति ने तुरंत अपने मुलायम हाथों से मेरे बालों को प्यार से सहलाने लगी जैसे कोई नन्हें बच्चे को संवारती हो ऐसा अद्भुत एहसास में हृदय के भीतर महसूस हुआ जो मेरी जिंदगी का यह सुंदर क्षण था । जो मेरे मन को भावुक बना दिया ।

मैंने शुक्रिया जताते हुए कहा- " आप तो कुछ ज्यादा ही प्यार जता रही हों, कहीं मैं तुमसे प्यार न कर बैठूं, इसका भी ख्याल रखिए ।
मेरा ऐसा प्रत्युत्तर सुनकर वो थोड़ी शर्मा गयी, ओर बोली - " तुम भी क्या बहकी-बहकी बातें करते हो । खैर.., मोबाइल का इस्तेमाल करते हो के नहीं ?"
हां, वो टचपेड़ वाला शादा मोबाइल का इस्तेमाल करता हूं ।"
" तुम पक्के बुद्धू हो इस स्मार्टफोन के जमाने में भला कौन ऐसा फोन इस्तेमाल करता है ?"
मैंने हंसते हुए कहा- " हमें तो बस कोल करना और रिसीव करना आता हैं, वर्ना हमारी कोई गर्लफेंड्र तो हैं नहीं जिसे हर रोज मैसेज करें और उसे तंग-वंग करें ।"

वो हंस कर बोली- " आपकी पर्सनालिटी को देखकर अच्छी अच्छी गर्लफ्रेंड प्रभावित हो जाएंगी फिर किस की औकात जो आपके प्यार को ठुकरा दें ।"
मैंने कहा- " ज्योति कहना और करने में जैसे सूखे तालाब में मछली ढूंढने जैसा काम हैं क्योंकि हम जो सोचते हैं वो कहा होता हैं, हम जो नहीं सोचते वो हो जाता है।"

इतने में उसका फोन आ गया वो तुरंत डिस्प्ले पर नंबर देखकर बड़ी हड़बड़ी में भागती हुई लाईब्रेरी के बाहर चली गयी, वो भी मुझे बताएं बगैर, मैं अचानक ऐसा वर्तन-व्यवहार देखकर चौंक गया ।

( कहानी कैसी लगी, उसकी प्रतिक्रिया या अभिप्राय अवश्य व्यक्त किजिए ।)
नेक्स्ट पार्ट टु शीघ्र अपलोड या पब्लिशर्स करूंगा । पढ़ने के दिल से धन्यवाद ।।

© -© Shekhar Kharadi
तिथि- १५/३/२०२२, मार्च