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एक वक्त बदलते वक्त के नाम
मेरी जिन्दगी में ऐसे लोग आए है जिन्हे मैं पूरी तरह से अपना नहीं कह सकती
क्योंकि मैं तो उन्हें अपना मानकर सब कुछ करती हूं पर वो लोग सिर्फ़ बाहरी दिखावे के लिए करते है हां सब पता है मुझे फिर भी दिल नहीं मानता। उनके लिए कुछ करने को सोचती हूं शायद एक दिन सब ठीक हो जायेगा पर ऐसा नहीं होता। वो चाहते है कि मैं कामयाब हो जाऊं पर जब भी कदम बढ़ाती हूं तो उनको ये जरा भी रास नहीं आता। लहजा बदलता है इस दुनिया में जेब में पैसे देखकर और वैसे ही नजरिए से सस्ती चीजों से तौला जाता है। मैं मानती हूं कि पैसा जरूरी है पर इतना नहीं की आदमी आदमी में फ़र्क बताने लगे। जो रिश्तों को ख़ास बनाने के लिए कुछ कहते नहीं वो दुनिया में बेवकूफ होते नहीं खैर लोग कदम कदम पर गिरगिट की तरह बदलते है । जिन लोग को आपकी कामयाबी रास नहीं आती वो कभी आपकी तारीफ़ नही कर सकते और अगर करेंगे तो दबी जुबान से और मन में सारे उदासीन भाव के साथ। ये दुनिया बहुत स्वार्थी है ये खुद के साथ बहुत शालीनता का व्यवहार पसंद करती है पर खुद देना नहीं जानती।
किसी को कभी प्रोत्साहन तो देती नहीं
पर उसकी नाकामयाबी का मज़ाक बना देती है। कोई कितना भी अपना क्यों न हो जब रास्ते के संघर्ष से सीखना सीख जाते हो तब सब बदलने लगते है जब खुद की खोज में निकलते हो तो सब आपको कैसे पीछे करके आपको कष्ट दे बस यही सोचती है। ये दुनिया और दुनिया के लोग कभी सगे नहीं होते इसलिए लोगो को खुद पर विश्वास रखने से बड़ा कोई विश्वसनीय काम नहीं करना चाहिए। लोगो की बातों और उनके व्यवहार के लिए अंजान और बहरे बने रहिए जिन्दगी बहुत आसान होगी ।
लोगो का क्या है वो तो पल पल बदलते है कल अच्छे और परसो बहुत बुरे । लेकिन आप हर रास्ते पर अपनी धुन लिए बेधड़क चलते रहिए आपका खुद के साथ होना सबसे बड़ी उपलब्धि है।
© varsha's ink