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योगदान
उतना ही लो थाली में,
की व्यर्थ ना जाए नाली में।

यह बात मेरी नानीजी हमे अक्सर कहती थी। उन्ही के संस्कारो की बदौलत आज शायद में थोड़ा बहुत विवेक जानता हूं। आज हम देख रहे है कि शादियों में, पार्टियों मे, यहा तक की हमारे घरों में भी खाना बहुतायत में बनता है। वह भोजन जिसको ग्रहण करने वाले सदस्यों की संख्या बहुत कम है। सिर्फ और सिर्फ हमारे झुटे गरुर और अभिमान को पुष्ट करने के लिए। अधिकांश लोग इसी प्रतियोगिता के चलते कि हमारा सम्मान घटेगा यदि हमने राजशाही शादी या पार्टी नहीं रखी तो। और अमीरों में होने वाली इसी प्रतियोगिता के चलते इतना अधिक भोजन हर वर्ष व्यर्थ हो जाता है जिससे करीबन दस लाख लोगों को रोजाना खिलाया जा सकता है। सिर्फ व्यर्थ जो नाली में या कचरे में फेक दिया जाता है उस भोजन की बात कर रहा हूं में।

परिणाम स्वरूप भोजन सामग्रियों की कीमतें आसमान पार कर रही है। देखिए, क्योंकि भोजन ,अनाज,दाल,फल,सब्जियों,दूध डेरी सबकी पैदावर तो उतनी ही है वो नहीं बढ़ रही है। तो जो भोजन फेका जा रहा है उसे कोई नया भोजन आकर प्रतिस्थापित नहीं कर रहा। इसका अर्थ है कि भोजन की व अनाज की कमी। और इसके फलस्वरूप कीमतों का बढ़ना। अब जो भोजन व्वर्थ फेकते है उन्हें इन कीमतों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, फिर दाल चाहे 100 ₹ प्रति किलो हो या 130 ₹ प्रति किलो , तेल चाहे 110 ₹ प्रति लीटर हो 150 ₹ प्रति लीटर। फर्क और असर पड़ेगा तो उन्हें जो सीमित वेतन या तनख्वाह में घर चलाते है। वो जिन्हें वेतन में वृद्धि के नाम पर कुछ नहीं मिलता। सरकारी नौकरियों वालो को भी सरकार inflation के अनुसार annual salary hike देती है। पर उन लोगो का क्या जिनका वेतन पिछले पांच सालो से एक समान है। अब आप कहेंगे कि इन्हें काबिल बनाओ, सशक्त बनाओ। जी बिल्कुल बनाओ परंतु फिर भी आखरी में तो कोई ना कोई आना ही है फिर भले से वो दस लाख रुपए महीने कमाने वाला हो या दस हजार। और जो आखरी में आएगा वो खा नहीं पाएगा क्योंकि भोजन तो सीमित है। Top 90% जो भी है वहा तक खाना पहुंच जाएगा पर आखरी के 10% का क्या ???

एक सरल उदाहरण के जरिए समझिए कि एक देश में 100 लोग निवास करते हैं। और वह देश सालाना 100 किलोग्राम गेहूं का उत्पादन करता है। अब एक और चीज मान कर चलिए कि हर साल प्रति व्यक्ति 1 किलो गेहूं का प्रयोग करता है। तो अब यह 100 किलोग्राम 100 लोगों के लिए पर्याप्त है ।

मुख्य खेल अब यहां आता है, अब मान के चलिए १00 लोगों में से जो लोग 10 अमीर है, वह गेहूं की पैदावार का 30% हिस्सा खरीद लेते हैं उनके शादी या पार्टियों व घरेलू उपयोग के लिए। तो यह 30 % हिस्सा 30 किलो गेहूं के समतुल्य है। अब बचा 70 किलो गेहूं जो कि 90 लोगों के बीच में बांटना है। परंतु हर व्यक्ति की खपत तो 1 किलो प्रति सालाना है तो बचे हुए 20 लोगों का क्या होगा। यही निम्न 20% लोग जो है, संघर्ष और भूक का सामना करते हैं। धीरे-धीरे जब अनाज की पैदावार और कम होती जाएगी और अनाज का फेंका जाना और व्यर्थ हो ना बढ़ता जाएगा तो यह प्रतिशत 20 से 50 तक भी पहुंच सकता है तब यह परिस्थिति देश के राजनीतिक और सामाजिक संतुलन को हानि पहुंचा सकती है क्योंकि व्यक्ति के पास जब खाने को नहीं मिलेगा तो वह गुना के रास्ते पर जरूर चलेगा। अब आप समझ सकते हैं, कि यह परिस्थिति कोई आम साधारण परिस्थिति नहीं है । यह आने वाले विकट संकट का अंदेशा है। पर हमें देश को राजनीति से क्या मतलब हमें क्या मतलब कि हमारे देश में आने वाले समय में क्या घटित होगा हमें तो बस अपनी अपने परिवार की और अपने मित्रों की और अपनी जिंदगी की परवाह है।
जब तक भारत के युवा की यह मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक देश में परिवर्तन और सामाजिक एकरूपता स्थापित नहीं होगी।

मेरा आप सभी से निवेदन है कि आप अपने आसपास के संसाधनों व रिसोर्सेज का विवेक व संवेदनशीलता से प्रयोग करें। क्योंकि हमें आने वाली हमारी अगली पीढ़ी को भी जवाब देना होगा। यह तो सिर्फ भोजन की बात हुई ऐसे ही पर्यावरण प्रदूषण और कृषि आर्थिक व्यवस्था सभी पर हमें एक साथ मिलकर देशहित,लोकहीत समाज हित में सोचना व कार्य करना होगा।

नमस्कार 🙏🙏🙏
© vibstalk