बूढ़ी अम्मा भाग ४
अम्मा बेरों को बड़े प्यार से सहला रही थी।
सौभ्य ने कहा माँ अब खा भी लो।
बेर भरे कागज़ को अम्मा ने अपनी मुट्ठी में समेट लिया।
सौभ्य ने कहा क्या हुआ अम्मा मंगवाए तो आपने बड़े चाव से थे। अम्मा कुछ बोल सकती तो न बोलती।
सौभ्य ने देखा उसकी आँखें बोल रही थी।
आँखों से टप टप अश्रु की धारा बह रही थी।
सौभ्य को इतना तो समझ आ रहा था।
कुछ न कुछ तो इन बेरों का इनसे कनेक्शन तो है।
सौभ्य के कुछ समझ नहीं आ रहा था।
वो उन्हें खुश रखने का भरसक प्रयास करता।
कभी कभी उन्हें अपनी और उनकी पुरानी बातों से अवगत कराता।
क्या पता उसे वो पहचान जाए।
लेकिन अफ़सोस ऐसा कुछ हुआ नहीं।
मन ही मन सौभ्य सोचता पता नहीं अम्मा से उसकी
कभी बात भी हो पाएगी की नहीं।
दूसरे दिन सूर्य की किरणें रोशनदान से निकल
अम्मा के मुख मंडल पे पड़ रही थीं।
उनकी नींद खराब न हो इसलिए असिस्टेंट रोशनदान बंद करने लगी।
रोशनदान अभी बंद ही कर रही थी तभी अम्मा की
तरफ देख कर बोली।
अम्मा बेर वाली आई है।
अम्मा खिड़की की तरफ एक बार फिर ईशारा करने लगी। आज सौभ्य ने अस्सिटेंट से कहा।
बेर वाली कुछ पैसे देगी जाकर लेते आओ।
मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है।
असिस्टेंट ने बेर वाली से कहा तो वो कहने लगी
ऐसे कैसे दे दूँ तुम्हे पैसे मैं तो तुम्हे पहचानती जानती भी नहीं।
कल को साब मुझसे माँगेंगे तो मैं कहाँ से दूँगी।
असिस्टेंट ने कहा एक काम करो तुम साब के घर
चलकर उनसे मिल तसल्ली कर लो।
बेरवाली कहने लगी बच्चे ठेले पर से बेर उठा उठा
खा लेंगे मेरा नुकसान हो जाएगा।
असिस्टेन्ट ने कहा तुम इन बेरों को किसी कपड़े से
ढक दो।
बेर वाली मान गई आज वो बेर बेचने जल्दी ही आ
गई थी।शायद उसे नींद भी न आई होगी।
सौभ्य के बचे पैसे जो वापस करने थे।
सीढ़ियों से सौभ्य के कमरे में जैसे ही दाखिल होती है।सामने अम्मा को देखते ही उसके मुख से चीख निकलती है।
माँ .....
सौभ्य दंग होकर कभी अम्मा की तरफ
तो कभी बेर वाली की तरफ देखता है।
वो अम्मा के गले लग बोले जा रही थी।
कहाँ कहाँ नही ढूँढा मैंने तुम्हे।
अम्मा उसे देख खुश तो हुई मगर उन्होंने उसे पहचाना नहीं।
वो उनको अपने हाथों से हिला हिला कर बोल रही थी माँ मैं आपकी बेटी कोयली हूँ।
आप प्यार से इसी नाम से तो मुझे बुलाती थीं।
सौभ्य को माज़रा समझते देर नहीं लगी।
उसने कोयली को सारा किस्सा सुना दिया।
कोयली ने कहा वो माँ को अपने घर ले जाना चाहती है।
सौभ्य ने कोयली से कहने लगा क्या वहां घर पर इतनी सुविधा सम्भव है ....
कोयली कहने लगी क्या पता पुराना घर देखकर ही
इन्हें कुछ याद आ जाए।
सौभ्य को तो जैसे अम्मा की आदत सी हो गई थी।
उसने कोयली से कहा तुम किस किस की देखभाल
करोगी।
कोयली... क्या मतलब है आपका।
सौभ्य..अम्मा ने बताया था तुम्हारे पिताजी को
लकवा मार गया है।
कोयली अम्मा की तरफ देख हँसने लगी।
अम्मा की तरफ देखते हुए,आपने ऐसा क्यों कहा?
पिताजी को तो कुछ नहीं हुआ।
वो सौभ्य को बताने लगी,उसके पिताजी को कुछ
नहीं हुआ है।
माँ ने ऐसे ही कह दिया होगा।
सौभ्य क्या मतलब है ...तुम्हारा
वो कहने लगी अम्मा जितना भी कमा के लाती
सारे पैसे दारू पीने में उड़ा देते।
घर बड़ी मुश्किल से चलता था अब भी पिताजी का
वो ही हाल है जितना कमाते हैं सब दारू पीने में
उड़ा देते हैं।
सौभ्य घड़ी देखते हुए आज तो ऑफिस जाने के लिए देर हो गई।
अम्मा सौभ्य को बीती बातों से नहीं जानती थी।
लेकिन उन्हें लगता था उनका कोई अपना है।
नीचे से आवाज़ आ रही थी।
बेर वाली ओ बेर वाली
ठेला खड़ा करके कहाँ चली गई।
© Manju Pandey Choubey
सौभ्य ने कहा माँ अब खा भी लो।
बेर भरे कागज़ को अम्मा ने अपनी मुट्ठी में समेट लिया।
सौभ्य ने कहा क्या हुआ अम्मा मंगवाए तो आपने बड़े चाव से थे। अम्मा कुछ बोल सकती तो न बोलती।
सौभ्य ने देखा उसकी आँखें बोल रही थी।
आँखों से टप टप अश्रु की धारा बह रही थी।
सौभ्य को इतना तो समझ आ रहा था।
कुछ न कुछ तो इन बेरों का इनसे कनेक्शन तो है।
सौभ्य के कुछ समझ नहीं आ रहा था।
वो उन्हें खुश रखने का भरसक प्रयास करता।
कभी कभी उन्हें अपनी और उनकी पुरानी बातों से अवगत कराता।
क्या पता उसे वो पहचान जाए।
लेकिन अफ़सोस ऐसा कुछ हुआ नहीं।
मन ही मन सौभ्य सोचता पता नहीं अम्मा से उसकी
कभी बात भी हो पाएगी की नहीं।
दूसरे दिन सूर्य की किरणें रोशनदान से निकल
अम्मा के मुख मंडल पे पड़ रही थीं।
उनकी नींद खराब न हो इसलिए असिस्टेंट रोशनदान बंद करने लगी।
रोशनदान अभी बंद ही कर रही थी तभी अम्मा की
तरफ देख कर बोली।
अम्मा बेर वाली आई है।
अम्मा खिड़की की तरफ एक बार फिर ईशारा करने लगी। आज सौभ्य ने अस्सिटेंट से कहा।
बेर वाली कुछ पैसे देगी जाकर लेते आओ।
मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है।
असिस्टेंट ने बेर वाली से कहा तो वो कहने लगी
ऐसे कैसे दे दूँ तुम्हे पैसे मैं तो तुम्हे पहचानती जानती भी नहीं।
कल को साब मुझसे माँगेंगे तो मैं कहाँ से दूँगी।
असिस्टेंट ने कहा एक काम करो तुम साब के घर
चलकर उनसे मिल तसल्ली कर लो।
बेरवाली कहने लगी बच्चे ठेले पर से बेर उठा उठा
खा लेंगे मेरा नुकसान हो जाएगा।
असिस्टेन्ट ने कहा तुम इन बेरों को किसी कपड़े से
ढक दो।
बेर वाली मान गई आज वो बेर बेचने जल्दी ही आ
गई थी।शायद उसे नींद भी न आई होगी।
सौभ्य के बचे पैसे जो वापस करने थे।
सीढ़ियों से सौभ्य के कमरे में जैसे ही दाखिल होती है।सामने अम्मा को देखते ही उसके मुख से चीख निकलती है।
माँ .....
सौभ्य दंग होकर कभी अम्मा की तरफ
तो कभी बेर वाली की तरफ देखता है।
वो अम्मा के गले लग बोले जा रही थी।
कहाँ कहाँ नही ढूँढा मैंने तुम्हे।
अम्मा उसे देख खुश तो हुई मगर उन्होंने उसे पहचाना नहीं।
वो उनको अपने हाथों से हिला हिला कर बोल रही थी माँ मैं आपकी बेटी कोयली हूँ।
आप प्यार से इसी नाम से तो मुझे बुलाती थीं।
सौभ्य को माज़रा समझते देर नहीं लगी।
उसने कोयली को सारा किस्सा सुना दिया।
कोयली ने कहा वो माँ को अपने घर ले जाना चाहती है।
सौभ्य ने कोयली से कहने लगा क्या वहां घर पर इतनी सुविधा सम्भव है ....
कोयली कहने लगी क्या पता पुराना घर देखकर ही
इन्हें कुछ याद आ जाए।
सौभ्य को तो जैसे अम्मा की आदत सी हो गई थी।
उसने कोयली से कहा तुम किस किस की देखभाल
करोगी।
कोयली... क्या मतलब है आपका।
सौभ्य..अम्मा ने बताया था तुम्हारे पिताजी को
लकवा मार गया है।
कोयली अम्मा की तरफ देख हँसने लगी।
अम्मा की तरफ देखते हुए,आपने ऐसा क्यों कहा?
पिताजी को तो कुछ नहीं हुआ।
वो सौभ्य को बताने लगी,उसके पिताजी को कुछ
नहीं हुआ है।
माँ ने ऐसे ही कह दिया होगा।
सौभ्य क्या मतलब है ...तुम्हारा
वो कहने लगी अम्मा जितना भी कमा के लाती
सारे पैसे दारू पीने में उड़ा देते।
घर बड़ी मुश्किल से चलता था अब भी पिताजी का
वो ही हाल है जितना कमाते हैं सब दारू पीने में
उड़ा देते हैं।
सौभ्य घड़ी देखते हुए आज तो ऑफिस जाने के लिए देर हो गई।
अम्मा सौभ्य को बीती बातों से नहीं जानती थी।
लेकिन उन्हें लगता था उनका कोई अपना है।
नीचे से आवाज़ आ रही थी।
बेर वाली ओ बेर वाली
ठेला खड़ा करके कहाँ चली गई।
© Manju Pandey Choubey
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